जिसे हमने देवता माना , सरेआम डूबा डाला | |
जवानी जिस पर लूटा दिया , छोड़ शादी रचा डाला | |
दिल से जिसको पूजा हमने , हमें मिट्टी बना डाला | |
कसमें वादों की बात अलग , हमको ही भूला डाला | |
मिलकर जो सपने देखे थे , वो आज सपना ना रहा | |
जब सामने से गुजरते हैं , अश्कों सिवा कुछ ना रहा | |
दिन रात तड़पते रहते हैं , कोई आसरा ना रहा | |
छोड़ मनमानी तलाक दिये , कसम का वास्ता ना रहा | |
अब फेंका सूखे गुलाब को , नये कलियों में खो गये | |
मेरे अश्कों की कीमत क्या , जब वो किसी के हो गये | |
निगाहें उन्हें ढूढती हैं , क्यों हमसे जुदा हो गये | |
जो धड़कन बन कर रहते थे , वो दिल से जुदा हो गये | |
देखते हैं गैरों की तरह , छोड़ जुदा ना रहते थे | |
भौरों जैसे चिपके रहते , चुपड़ी बातें करते थे | |
देख चलें अजनबी की तरह , दिल से सटकर रहते थे | |
वर्मा अपने ही गैर हुए , जो दिल बनकर रहते थे | |
श्याम नारायण वर्मा |
Comment
अंतर्मन के भाव व्यक्त करती रचना पर बधाई
छोड़ मनमानी तलाक दिये , कसम का वास्ता ना रहा | |
अब फेंका सूखे गुलाब को , नये कलियों में खो गये | |
मेरे अश्कों की कीमत क्या , जब वो किसी के हो गये | |
निगाहें उन्हें ढूढती हैं , क्यों हमसे जुदा हो गये | |
जो धड़कन बन कर रहते थे , वो दिल से जुदा हो गये | दिल में उठाते तूफ़ान को सही शब्द दिए हैं आपने श्री श्याम नारायण वर्मा जी ! बधाई |
मन में उठते भावों से अंतर्मन में द्वन्द को अभिव्यक्त करने के लिए बधाई
अंतर्मन के भावों की अभिव्यक्ति कर बधाई स्वीकारें
सुन्दर भाव सम्प्रेषण पर बधाई आदरणीय, रचना में और कसावट की दरकार है ।
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी. आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें
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