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दुर्मिल सवैया..........!!!.जय जय बजरंगबली !!!


बजरंगबली सुख शांति मिले, जय राम कहे हरि प्रीति बढ़े।
मन प्रेम रसे अति धीर धरे, उर राम बसे नहि होत बड़े।।
हनुमान कहे मन मान सधे, हम बालक हैं गुन गान अड़े।
सुर रीति सजे नवनीत गहे, हम दीन बड़े अति हीन मढ़े।।1

तुम दीन दयाल सुभाय भली, दर आय सभी सुख पाय चली।
रघुवीर सदा सिर हाथ रखीं, हिय छाप धरीं तन राम कली।।
तुम भूत पिचास भगाय हॅसी, सिय मातु सुजान अशीष फली।
तुम दानव काल समेट सभी, तुम शेषहि वीर जगाय भली।।2

प्रभु जान अनाथ दया कहता, हम हैं अति पाप छमा सठता।
सुख लाय सदा दुख दूर हटा, शिख सरन पड़ा वरदान जता।।
प्रभु नाथ सनाथ रमा रमता, फलियाय सदा करता भरता।
प्रभु दास सदा हरि नाम जपा, अब आय सहाय बनो हरता।।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 18, 2013 at 8:33am

आदरणीय, गणेशजी बागी जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम!  जी सर,  मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूं। सर, आपने प्रस्तुत प्रसंग में विस्तृत रूप से व्याख्या करके बेहद ज्ञानपूरित संदभों को साझा किया। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं आपका आजीवन आभारी रहूंगा। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 18, 2013 at 8:26am

आदरणीय, अशोक कुमार रक्ताले जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! सर, मैं ऐसा बार बार देख रहा हूं कि प्रारम्भ में लय सही चलती है और अन्त आते आते कुछ गड़बड़ हो जाती है। मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि यह जल्दबाजी है या उत्तेजना!!! जबकि मैंने कई कई बार दोहराए भी लेकिन उन्हे ठीक नही कर पाता हूं। सर, इसीलिए ही मैंने अपना भाव भी साझा किया था। कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें। ... कि मुझे क्या करना चाहिए?
सर, आपने प्रस्तुत प्रसंग में विस्तृत रूप से व्याख्या करके बेहद रूचिपूर्ण और ज्ञानपूरित संदभों को साझा किया। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं आपका आजीवन आभारी रहूंगा। सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 18, 2013 at 7:48am

आदरणीय बागी जी सादर अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2013 at 12:03am

केवल प्रसाद जी, सवैया पर बहुत ही बढ़िया प्रयास हुआ है, काव्य चाहे जिस विधा में हो, जो भाव सम्प्रेषण कर्ता रचना के माध्यम से संप्रेषित किया हो वह भाव हुबहू पाठक तक  आने चाहिए । आदरणीय रकताले साहब ने बिल्कुल सटीक सुझाव दिया है, अंतिम सवैया स्वयम में उलझी हुई है, जो आप कहना चाह रहे है वह स्पष्ट से नहीं निकल रहा । 

इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें । 

साथ ही इस महत्वपूर्ण सुझाव हेतु आदरणीय रकताले साहब को आभार प्रेषित करता हूँ । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 17, 2013 at 11:41pm

"प्रभु जान अनाथ दया कहता, हम हैं अति पाप छमा सठता।
सुख लाय सदा दुख दूर हटा, शिख सरन पड़ा वरदान जता।।" यह गण दोष है. जिसकी ओर मैंने ध्यान आकृष्ट कराया था.

आपने अंतिम सवैया पर  पंक्ति पंक्ति विस्तार से उसका अर्थ समझाने का प्रयास किया है. भाई बुरा न माने मेरा तनिक भी इरादा आपको आहत करने का नहीं रहा है. मगर आपने जो लिखा है उस पर संक्षिप्त में कहना चाहता हूँ

प्रभु जान अनाथ दया कहता........ इस पंक्ति का अर्थ जैसा आपने लिया है "प्रभु मुझे अनाथ समझ, दया कहता है,"इसमे याचना कहाँ है?

हम हैं अति पाप क्षमा सठता........... इस पंक्ति में तो लगता है आधी बात छोड़कर दूसरी पर आ गए हैं,

सुख लाय सदा दुख दूर हटा ....सदा प्रसन्नता देने साथ ही सभी दुःख दूर करते हैं,........यह ठीक है,

 शिख सरन पड़ा वरदान जता।।............ वरदान दिया जाता है जताया नहीं जाता 'वरदान जता" आदेशात्मक लगता है

प्रभु नाथ सनाथ रमा रमता............ आदरणीय इस पंक्ति में राम हैं कहाँ?  और "रमा" अर्थात देवी लक्ष्मी होता है रमा रमण जाने तो भगवान विष्णु. आपका बताया भावार्थ किसी भी तरह नहीं निकल पा रहा है.

"फलियाय सदा करता भरता।....आप सदा फल देने वाले हैं और सदा कर्ता भर्ता हैं।" भरता से क्या समझें?

चतुथ पद पर यही कहूंगा यह लगभग ठीक है.

यदि कभी वरिष्ठ जनों की इस ओर दृष्टि गयी तो वे अधिक सहायता कर सकेंगे. मुझसे भी हो सकता है कहीं त्रुटी हुई हो तो वे उस पर भी अवश्य ही प्रकाश डालें. मेरी सद्कामाना है.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 6:56pm

आदरणीया गीतिका ’वेदिका’ जी,   आपको सवैया पसन्द आई।  आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।   सादर,

Comment by वेदिका on April 17, 2013 at 6:03pm

अरे वाह आदरणीय केवल प्रसाद जी! सुंदर सवैया ....उस पर आपने विस्तार भी दिया ...लाजवाब।
शुभकामनाये 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 5:59pm

आदरणीय, राम शिरोमणि पाठक जी, प्रिय मित्र, आपके के ही उर्जा से मैं चलायमान हूं।  मैं आपके ही पीछे चल रहा हूं। आपको रचना पसन्द आई।  आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।   सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 5:53pm

आदरणीय, योगी सारस्वत जी, आपको रचना पसन्द आई।  आपका हार्दिक आभार।   सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:28pm

आदरणीय केवल भाई जी,बहुत सुन्दर !! आप तो बड़ी तीब्रता से भागे जा रहे है /हार्दिक बधाई भाई जी

हमहूँ पिछवई हई भाई ///

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