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दो घनाक्षरियां / संदीप कुमार पटेल

(1)

सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,
ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए
घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे
लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए
ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो
प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए
और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी
मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए । 

(2)

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे, अब न छुपाइए
बोले सुनो दीप भाई, श्रम बिना हो कमाई
चंदा दे के लोग बोलें, काम ये बनाइए
बैठे बैठे लील रहे, लाखों क्या करोड़ों हम
हो सके तो आप भी ये, योग अपनाइए । 

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 7:03pm

आदरणीय, संदीप कुमार पटेल जी, ’बोले सुनो दीप भाई, श्रम बिना हो कमाई
चंदा दे के लोग बोलें, काम ये बनाइए ’ बहुत ही सुन्दर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 16, 2013 at 6:16pm

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये 
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए 
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो 
हुआ ये कमाल कैसे, अब न छुपाइए!!

आकर्षण के लिए तोंद पर्याप्त है ///हा हा हाहा
बहुत सुन्दर आदरणीय भाई संदीप जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 6:07pm

आदरणीया कल्पना जी सादर प्रणाम,

छंदों को सराह उत्साह बढाने हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by कल्पना रामानी on April 16, 2013 at 6:03pm

संदीप जी, दोनों छंद बहुत मन भाए, बधाई आपको...

कृपया ध्यान दे...

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