आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आप के कहे को
मान दिया था,
अनुचित आदेश को
मान लिया था |
आप पर विश्वास था,
मिला था आशीर्वाद-
एक अफलित आशीर्वाद |
हे पूज्य!
आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आपने तोड़ा था विश्वास,
किंचित, मुझे नही मानना था
संकुचित आदेश,
मुझे नही देना था-
अंगूठा,
दिखला देना था-
अंगूठा,
क्या होता ?
नालायक कहलाता !
अल्प काल के लिए,
किंतु नही घुलता
तिल-तिल, प्रति-दिन,
हे पूज्य!
आज भी लगता है,
आप ग़लत थे,
किंतु,
मैं भी ग़लत था,
Comment
सराहना हेतु कॉटिश: आभार आदरणीया कविता वर्मा जी |
परम आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, उत्साहवर्धन तथा आशीर्वाद हेतु कॉटिश: आभार स्वीकार करें, सादर |
प्रिय रामशिरोमणि जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार |
आदरणीय योगी सारस्वत जी, उत्साहवर्धन हेतु आभार, कृपया आगमन बनाए रखें |
बहुत बहुत आभार आदरणीय अरुण निगम जी, स्नेह बनाए रखें, सादर |
galat ka samrthan karna galat hota hai ...isse upaje kashmakash ko bakhoobi darshaya aapne ..sundar vicharneey rachna ...
हे पूज्य!
आज भी लगता है,
आप ग़लत थे,
किंतु,
मैं भी ग़लत था,
आदरणीय गणेश सर बहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
क्या होता ?
नालायक कहलाता !
अल्प काल के लिए,
किंतु नही घुलता
तिल-तिल, प्रति-दिन,
हे पूज्य!
आज भी लगता है,
आप ग़लत थे,
किंतु,
मैं भी ग़लत था,
गलत सही का मायने, घट-बढ़ छइयाँ-धूप
सत्य अटल है सर्वदा , कभी न बदले रूप ||
बहुत ही सरलता से मन के उद्गार व्यक्त किये गये.बधाई आदरणीय.....
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