मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से
खबर से जी नहीं भरता हमारा
मजा आता है केवल सनसनी से
अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से
ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से
बह्र-ए-हजज मुसद्दस महज़ूफ़
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
वीनस केसरी जी , नज़ाकत भी . गीले भी शिकवा भी तीर भी तलवार भी ........माशाल्लाह ! बहुत बधाई .
अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से ------ पूरी ग़ज़ल ही शानदार है बस इन दो शेरो की क्या तारीफ करूँ दिली दाद कबूल करें
क्या बात है जय हो
इक इक अशआर शानदार है साहब
इस शानदार और जानदार ग़ज़ल के हर अशआर पे ढेरों दाद हाजिर हैं
क़ुबूल फरमाइए सादर
जय हो
आदरणीय, वीनस केसरी जी! बेहद सुन्दर गजल।.’अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से।’ वाह सर जी! बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकारें...। सादर,
मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से .......................भाई लाजवाब मतला कहा है।
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से .......मर जाऊँ इस सादगी पे...
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से ...भाई क्या करोगे जमाने का यही दस्तूर है बिना प्यास के कोई कहाँ जाता है कुएं के पास
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से ..............निभाए जाओ ॥बढ़िया है
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से...............वाह वाह वाह....काश ऐसा मैं भी कह पाता
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से........शिकायत पे गौर किया जाएगा.....हाहाहहहह बहुत उम्दा
खबर से जी नहीं भरता हमारा
मजा आता है केवल सनसनी से ......भाई आजकल के टीवी प्रोग्राम का अ सर है
अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से..............ये अंदाजे बयान पसंद आया ...बहुत बढ़िया
ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से.........भाई ऐसा ज़ुल्म न ढाओ ...अगर आजिज़ आ जाओगे तो इतने मुकम्मल ग़ज़ल कैसे मिलेगी पढ़ने को...
वीनस भाई एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल करें !
bahot khoob.................
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