जीतने के सौ तरीके खोजने वाले,
ग्लूकान-डी के सहारे
सूरज से लड़ने वाले हम इंसान
उजले सच को भी बर्दाशत नहीं कर पाते
प्रकृति पर विजय की लालसा लिए,
हम इंसान
पर्वत विजय का जश्न मनाते हैं,
इंगलिश चैनल को तैर कर पार करते हैं,
भू-गर्भ की गहराइयों को 'मीटर' में नापते हैं,
'मीटर' के ऊपर के सारे पैमाने जाने कहाँ चले जाते हैं उस समय !!!
चाहते हैं,
चाँद पर खेती करें,
मंगल पर पानी मिल जाए,
नए तारों की खोज में ,
हमने टेलीस्कोपिक मीनारें खड़ी कर दीं
मगर
जब हम हारने लगते हैं
तो दुहाई देते हैं
हम भूल जाते हैं कि हमने ही बनाए थे नदियों पर बाँध
चढाते हैं बकरे की बली
मनाते हैं मनौती
विनती करते हैं
रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक
प्रार्थनाओं का दौर चलता है,
"माँ" हम सब अपकी संतान हैं .......
हम इंसान,,, दोगले हैं !!!
Comment
सत्य चाहे जो हो, ये भी अच्छा है कभी कभी हम खुद को भी कोस लें. सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.
आदरणीय वीनस जी, सत्य को उजागर कर दिया. लूटनेवाला लुटने के डर से शरणागत होता है. मांगते समय इतना भी नहीं सोचता है कि जो कुछ वह मांग रहा है, क्या वैसा ही कुछ लुटा रहा है ? सटीक रचना के लिए बधाई....
आ० वीनस जी
सच को मुखरता से कहती... तीक्ष अभिव्यक्ति
धरती पर प्रकृति के हर तत्व को नित ज़िंदगी के प्रतिकूल बनाता ...मनुष्य अन्य ग्रहों पर जीवन तलाशता फिरता है....?
ये दोगलापन ही तो है...
इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई
एक दम अलग सी रचना प्रस्तुत की है वीनस जी सच में इंसान दोगला है इसमें कोई दो राय नहीं प्रकृति से खिलवाड़ भी करता है उसके दुश्परिणामों पर या तो खुद को या खुदा को कोसता है इस शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई |
विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय,
पसंदगी के लिए आभार
निदा फाजली के एक शेर से अपनी बात कहूँगा कि,
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना...
वैसे पिछले दिनों जो रचनाएँ पोस्ट की हैं वो २००९ से २०११ के दरमियाँ लिखी थी
सादर
आदरणीय वीनस सर जी सादर
क्या ही खूबसूरती के साथ सच को साझा किया है आपने
इंसानी हक़ीकत इससे परे क्या है
आज श्रद्धा के नाम पर चल रहे ढकोसलो के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है आपने
और याद भी दिलाया है के तुम क्या हो
तुममे क्या क्षमता है
तुम क्या कर सकते हो
क्या कर चुके हो
पर ये इंसान है ग़लती और हार इसके दो ही पहलू हैं
जिन्हे ये दुर्भाग्य मानता है
उसके लिए क्या कीजे
जय हो
बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो
आ0 वीनस केसरी जी, ’विनती करते हैं
रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक
प्रार्थनाओं का दौर चलता है,
’माँ’ हम सब अपकी संतान हैं’। ...बहुत, बहुत ही सुन्दर । हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
खुबसूरत रचना हां हम इंसान है दोगले है - हार्दिक बधाई श्री वीनस केसरी जय
आपने मुहं मिया मिट्ठू बनते मोहल्ले है,
परीक्षा से पता लगता कितने खोखले है
फिर भी वाह वाह करते ये सब चोचले है |-
परम्परा निभाते देखो कितने होंसले है - नव संवत्सर कि हार्दिक शुभ कामनाए वीनस भाई
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