ग़ज़ल -
इस दुनिया ने जब भी कमाई काली दी ,
मेरे अंतरमन ने मुझ को गाली दी I
सच्चाई के रस्ते चलता हूँ दिन भर ,
अक्सर शामो ने है खाली थाली दी ।
शुकराना हर रूखी सूखी रोटी का ,
लड़ने की इच्छा बेहद बलशाली दी ।
खूं से हमने सींचा अपनी माटी को ,
तब मालिक ने होली और दिवाली दी ।
हम सब दोषी हैं दिल्ली की घटना के ,
हमने कौरव के हाथों पांचाली दी ।
निज हित दड़बे में सोये वीरों जागो ,
तुम शेरों के मुंह में किसने जाली दी ।
आम आदमी से वो खास हुए पल में
हमने जिनको सत्ता की दोनाली दी ।
सिस्टम ने गढ़ डाले सौ भ्रष्टाचारी ,
सहने को ये जनता भोली भाली दी ।
ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,
क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी ।
कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,
क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।
- अभिनव अरुण
[21042013]
{ सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना }
Comment
आदरणीय श्री रक्ताले जी , मेरा मानना है की एक रचनाकार ने पूरे जीवन में एक पंक्ति एक पते की बात कह दी तो वह सफल रहा और स्तुत्य है आपको कुछेक शेर पसंद आये यह मेरा सौभाग्य है , स्नेह बना रहे आदरणीय !! यही कामना है ।
आदरणीय भावना जी , बहुत आभार रचना के अनुमोदन के लिए !!
आदरणीय डॉ प्राची जी ! यह वैचारिकता ही मेरे भीतर तक घर कर गयी है मैं ज़माने से नहीं अपने आपसे संघर्ष रत हूँ और उसी के घर्षण से उत्पन्न हैं मेरी रचनाएँ जिनमे शिल्प और व्याकरण शायद कभी अपने पथ से विचलित हो जाए पर मैं अपनी सोच और कलम के हथियार के साथ सदा कुरुक्षेत्र में लड़ता मिलूंगा ... न जीत पाने के संदेह के साथ भी !!
आदरणीय श्री पाठक जी आभार , आपका स्नेह के लिए !!
खूबसूरत गज़ल/// हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव जी
सामयिक दौर में जहां उसूल कदम कदम पर दम तोड़ रहे हैं.... वहीं उच्च उच्च वैचारिकता को शब्द देती खूबसूरत सार्थक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव अरुण जी
कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,
क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।.......WAH ..BAHUT SUNDAR KAHAN ...........
ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,
क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी । .......क्रिस गेल आपके कहे को सत्य कर ही रहा है.सरजी
बहुत सुन्दर गजल है शुरू के कुछ अशार तो बहुत ही दिल को छूने वाले है.सादर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अभिनव अरुण जी
आदरणीय डॉ बाली साहब आपने इतनी व्यस्तता और ऊँचाइयों पर होते हुए भी मुझ अकिंचन की रचना पढ़ी और प्रतिक्रिया दी ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है ... साधुवाद आदरणीय !!
अपना स्वभाव ही कुछ ऐसा बन पड़ा है आदरणीय कुंती जी , गलत होता देख और कुछ नहीं तो कुछ लिख भर देना थोडा सुकून देता है बस । बहुत शुक्रिया प्रेरक शब्दों के लिए ।
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