!!! जय जय हनुमान !!!
(मकरी - कालनेमि राक्षस का उध्दार)
तारक तात तड़ाग तरावहिं, तापर तोष तना तन तावत।
दीन दयाल दया दम दानव, देवम दामन दास दिलावत।।
धारति धाय धरा धन धानम, धूल धमाल धरे धड़कावत।
नारद नाच नरेन्द्र निहारत, नाथ नरायन नाम नसावत।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एव अप्रकाशित
Comment
आ0 सुरन्द्र वर्मा जी, आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 रक्ताले जी, सर जी, जी यह संक्षिप्त परिचय मुझे पहले ही देना चाहिए था। शिथिलता के लिए क्षमा चाहता हूं। आपका बहुत बहुत अभार। सादर,
जानकारी साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय.
आ0 रक्ताले जी, यह कथा रामचरित मानस के लंका काण्ड की है। श्री हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तो रावण ने कालनेमि नामक राक्षस को हनुमानजी का राह रोकने हेतु भेजा था। यथा जब हनुमानजी वहां पहुचे तो कालनेमि ने हनुमान से कहा कि आप थक गये होंगे पास के सरोवर में हाथ-मुंह धोकर थोड़ा आराम करलें। हनुमान जी को यह बात जंच गई और वे जैसे ही सरोवर में गए, उसमें एक मकरी ने हनुमानजी को खाने का प्रयत्न किया। तभी हनुमानजी ने उसे मार गिराया। तब वह शापित मकरी मुक्त हो सुन्दरनारी बनकर कालनेमि राक्षस की धूर्त चाल के बारे में बताती है। यह जानने के बाद हनुमानजी ने तत्काल पहुचकर कालनेमि को भी स्वर्ग पहुंचा दिया। इस प्रकार धरा पर रहने वाले दुराचारी और पापियों को तत्काल मोक्ष देते हुए ईश्वर के सानिध्य तक पहुंचाते हैं। आलसी और धूर्त व्यक्ति तो सदा दूसरों पर आश्रित रहता है लेकिन श्रीहनुमानजी सदैव ही तत्परता से दास भाव होकर सदगति का मार्ग सुझाते हैं। आपके आशीश वचन हेतु हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर अच्छा सवैया लिखा है, इस मायाथालाजिकल घटना की जानकारी नहीं होने से मैं उसका ठीक आनंद नहीं ले पाया मगर शिल्प पर सुन्दर कसा हुआ छंद. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आ0 राम शिरोमणि जी, प्रिय मित्र! आपका हार्दिक आभार। सादर,
बधाई इस सुन्दर रचना के लिए .आदरणीय भाई केवल प्रसाद जी //त द ध न का प्रयो अच्छा लगा //
आ0 श्याम नारायण जी, आपका बहुत बहुत आभार। सादर,
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ...... |
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