For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222

कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।
रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1

जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।
चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2

चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।
वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3

यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।
खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया है।।4

बहा जो अश्क सावन में, कसक इंतजार छाया है।
समन्दर में लगा पावक, गुनों किसने बुझाया है।।5

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:12pm

आ0 रक्ताले जी,   जी सर !    मैं ओ0बी0ओ0 पर अध्यन कर रहा हूं और समस्याएं भी कम होती जा रही हैं। आपका बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:07pm

आ0 वीनस केसरी जी,   जी भाई !  बात समझ में आगई।  मैं ओ0बी0ओ0 पर अध्यन कर रहा हूं।  आपका बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:40am

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, आदरणीय प्रधान संपादक जी का प्रश्न बिलकुल सही है. गजलों पर आदरणीय वीनस जी ने क्रमवार कई आलेख लिखे हैं यदि आप मोबाइल पर उसे पढ़ सके तो आपकी समस्याओं का हल बिना प्रश्न के ही हो जाएगा.ऐसा मुझे लगता है. शुभकामनाएं.

Comment by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:41pm

केवल प्रसाद जी,
आपके तीसरे मतला के मिसरा-ए-सानी पर गणेश भाई ने कोई इस्लाह पेश नहीं की है और वो बेबह्र है
आप उस पर नज़र-ए-सानी फरमा लें ...

मात्र दूसरी ग़ज़ल ले लिहाज से आपका प्रयास स्तुति योग्य है ....
शुभकामनाएं 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 8:48pm

आ0 वीनस केसरी जी,   भाई जी,   आ0 गणेशजी द्वारा इसी गजल को शुध्द किया गया है।   क्या आपने उसे देखा?  अगर नहीं देखा हो, तो कृपया एकबार देखकर बतायें कि इसमें अभी और क्या हो सकता है।  आ0 गणेशजी सर की बात मेरे समझ में आ रही है।  मैनें शेर को भी मतले में ही लिखा था।  आदर सहित,

Comment by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 1:21pm

स्वागत है केवल प्रसाद जी,
परन्तु सुन्दर प्रयास और सफल प्रयास के अंतर को समझना भी आवश्यक है
साहित्य सृजन का कोई कोई प्रयास 'असुंदर' नहीं होता परन्तु जानकारी के आभाव में 'असफल' जरूर हो सकता है ...

अभी इस रचना को तगज्ज़ुल के लिहाज से भी ग़ज़ल होने में एक लम्बा सफ़र तय करना होगा ...
शिल्पगत कुछ और बातों पर भी ध्यान दीजिये

शुभकामनाएं

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:42am

आ0  वीनस केसरी जी,   भाई जी! मैंने निश्चय किया था कि आपसे वार्ता करके अपनी समस्या का निवारण करूंगा लेकिन आ0 गणेशजी सर ने मेरी गजल को स्पष्ट करके  मेरी समस्या का अन्त कर दिया।  फिर भी इसका मतलब यह नहीं कि मैं आपसे सेवा नहीं लूंगा।  मैं आपसे अवश्य ही सम्पर्क करूंगा। आप  लोगों की व्यस्तता को समझकर ही सम्पर्क करने से बचता हूं।  आपके साहस वचन ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया है।  आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए संजीवनी है।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:30am

आ0  सुरेन्द्र भ्रमर जी,   आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए संजीवनी है।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:27am

आ0 बृजेश नीरज जी,   भाई जी आपका सुझाव सरआंखों पर।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by वीनस केसरी on April 24, 2013 at 11:58pm

सुन्दर प्रयास ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
5 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service