नारी तुम स्तुति की देवी हो!
मां वसुधा सी प्यारी तुम,
संस्कृति की श्रध्दा देवी हो।
नारी तुम प्रगति प्रदर्शक हो!
कर में वीणा-सुरधारा तुम,
चंचलमय मृदुला देवी हो।
नारी तुम धैर्य-बलशालिनी हो!
अबला सीता क्षमा दान तुम,
मां शक्ति की दुर्गा देवी हो।
नारी तुम राधा सी प्यारी हो!
मीरा बाला सी अनुरागिनी तुम,
सती सावित्री सी देवी हो।
नारी तुम देश की कीर्ति हो!
सच्चे माने में इन्दिरा तुम,
भारत-सौभाग्य की देवी हो।
नारी तुम रिश्तों की बंधन हो!
दादी-मां-बहन-पत्नी-पुत्री तुम,
क्यों? बहू सी अग्नि देवी हो।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 विजय निकोर जी, आपका आशीष वचन पाकर मैं धन्य हुआ। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 आषीश त्रिवेदी जी, आपका समर्थन पाकर मैं धन्य हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,
दिमाग में गंभीर चिंतन - जाल फैलाती हुई आपकी पंक्तियाँ सच में सराहनीय बन पडी हैं !
सादर,
विजय निकोर
नारी के प्रति सम्मान दिखाती सुंदर रचना जो नारी शक्ति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है।
आ0 रक्ताले जी, सादर प्रणाम! जी, यह रचना हमारी बहुओं को समर्पित है। आखिर इन्हीं वहुओं के प्रति ही समाज इतना बुरा वर्ताव क्यों करता है? यह घृणित कार्य अतिअशोभनीय व निन्दनीय है। आपको रचना अच्छी लगी। आपका बहुत बहुत अभार। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, सुन्दर रचना प्रस्तुति.मगर अंतिम पद में "क्यों? बहू सी अग्नि देवी हो।" में देवी की जगह "दाही" लिखा जाना उचित होता. सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.
आदरणीय जवाहर लाल जी, सुप्रभात! आपके सानिध्य और आशीष वचन से मेरी रचना सफल हुई। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीया तनेजा जी, सुप्रभात! आपके प्रसंशनीय वचनों से मेरी रचना सफल हुई। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
उषा जी के विचारों से सहमत!
अति सुंदर शब्दों में नारी के प्रति पिरोई हुई सम्मान की भावना. काश, सभी इसे अपना सकें!
नारी को देवियों के रूप में पूजने वाले Kewal Prasad जी, आप धन्य है.
सादर...
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