बस आस तुम्हारी बाकी है
इस आंख में आंसू बाकी है
जब जब झरनों सी तरूणाई
आ आकर फिर लौटी है
तुम बन करके शीत चुभन
याद तुम्हारी लौटी है
मीत मिले दिन बरसों के
बात तुम्हारी बाकी है
वो दिन वो सुमधुर मिलन
अहसास अभी बाकी है
न जाने कितनी बार यहां
चांदनी आकर लौटी है
बरसों से बंद दरवाजे की
सांकल फिर से खटकी है
आ जाओ मन प्राण बसे
प्यास अब भी बाकी है
टूटे न जीवन डोर कहीं
सांस अब भी बाकी है
- बृजेश नीरज
Comment
आदरणीय रक्ताले साहब आपका आभार! नई विधाओं पर गम्भीर चर्चा की आवश्यकता है जिससे कि इस मंच पर उपस्थित सदस्य उनके विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें।
सादर!
प्रिय वंदना जी आपका आभार! प्रारम्भिक जानकारी के लिए नवगीत पर एक लेख भारतीय छंद विधान समूह में उपलब्ध है।
आदरणीय राजेश जी आपका आभार!
आदरणीय सौरभ जी, मुझसे अधिक आदरणीय प्राची बहन बधाई की हकदार हैं क्योंकि जिस सहजता से उनकी टिप्पणी पर मेरी आपत्तियों का उन्होंने निराकरण किया वह निश्चित ही बहुत धैर्य की मांग करता है।
सादर!
सुंदर लेखन, आपका प्रयास हमें बहुत ही भाया, आगे भी लिखते रहें, साहित्य की हर विधा आपके कलम से पुष्ट होकर निकलेगी यही कामना है, सादर
आदरणीय बृजेश नीरज जी सादर, नवगीत पर सुन्दर प्रयास हुआ है. बधाई और आभार, क्योंकि आपके इस प्रयास के कारण आदरेया डॉ. प्राची जी नवगीत पर विस्तार से एक जानकारी देने को तैयार हुई हैं. उनका भी आभार. इसकी जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही है. सादर.
बहुत सधा हुआ संवाद हुआ है. इस प्रक्रिया पर आदरणीया प्राचीजी और बृजेश भाईजी को हार्दिक बधाई.. .
आदरणीया प्राची जी,
नवगीत विधा भी उन विधाओं में से एक है जिन्हें मैं सीखने का प्रयास कर रहा हूं। ओ बी ओ पर आने के बाद से मेरा यह प्रयास रहा है कि किसी भी नई विधा पर कलम चलाने के पहले मैं भरसक उस विधा के बारे में जानने का प्रयास करता हूं जिससे कि मेरे प्रयास को आप लोगों के मार्गदर्शन द्वारा एक सार्थक परिणति तक पहुंचा सकूं।
आपकी गणना से मैं सहमत हूं। मैंने ये उदाहरण सिर्फ अपने प्रयास के औचित्य के रूप में प्रस्तुत किए थे। इस लिहाज से भी क्या मेरी रचना मात्रा गणना के आधार पर निरस्त की जा सकती है?
नवगीत पर आपने जो आलेख प्रस्तुत करने का विचार बनाया है वह स्वागतयोग्य है। यह मेरा आग्रह भी था कि हिन्दी साहित्य की नव विधाओं अतुकांत कविता, नवगीत, गद्य काव्य, साॅनेट आदि पर भी यहां चर्चा की जाए जिससे कि उन विधाओं में प्रस्तुत की जा रही रचनाओं के स्तर में सुधार संभव हो सके।
सादर!
आदरणीय बृजेश जी ,
//रूढ़िगत गीत और नवगीत के बीच अन्तर गणितीय नहीं है अर्थात जिस प्रकार हम कवित्त, सवैये, दोहे के संबंध में पिंगल शास्त्रीय निर्णय दे सकते हैं कि वे किस प्रकार एक दूसरे से पृथक् हैं, उस प्रकार का अंतर रूढ़ गीत और नवगीत के बीच स्थापित नहीं किया जा सकता... नवगीत में हम नवीनता से किसी भी विषय को अभिव्यक्त करते हैं .
नवगीत ने गीत को परंपरावादी घिसे-पिटे रूढ़ वातावरण से निकलकर यथार्थ का एक ठोस धरातल प्रदान करके संरक्षण प्रदान किया है.नवगीत एक ऐसा संबोधन है, जिसकी नवीनता कभी समाप्त नहीं हो सकती।विचारों की संश्लिष्टता, ताजगी, प्रयोगधर्मिता नई भाषा और बिम्बों के विशिष्ट समायोजन से इस विधा का गठन हुआ और नवरचनाकारों को यह विधा आकृष्ट करने में सक्षम है..//
ऐसा कई नवगीत रचनाकारों और स्थापित साहित्यकारों का मत है
मंच पर नवगीत विषय पर एक विस्तृत आलेख की आवश्यकता काफी समय से महसूस हो रही है...जल्दी ही सब तत्वों को समाहित करके एक आलेख नवगीत विधा पर लिखने का प्रयास करती हूँ..जिसपर सभी जानकार खुल कर चर्चा कर सकते हैं , ताकि तत्सम्बन्धी हर आयाम पूर्णतः स्पष्ट हो सके...
सादर.
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