महानगर के सबसे शानदार इलाके की सबसे अच्छी कोठियों में से एक में ब्रह्मराक्षस रहता है। वो स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान समझता है और चाहता है कि उसकी विद्वत्ता के चर्चे चारों दिशाओं में हों। समय समय पर ज्ञान के प्यासे लोग उसके पास आते रहते हैं। वो फौरन उनको अपना शिष्य बना लेता है। फिर उनके कानों में फुसफुसाकर गुरुमंत्र देता है। जैसे ही शिष्य इस गुरुमंत्र का उच्चारण करता है वो कुत्ता बन जाता है। इसके बाद ब्रह्मराक्षस अपनी तमाम पोथियाँ उसके सामने बाँचता है। तत्पश्चात ब्रह्मराक्षस उसके गले में अपने नाम का पट्टा डालकर कहता है कि जाओ इस ज्ञान को दुनिया भर में फैला दो।
कुत्ता सब के घरों के सामने जा जाकर वो सारा ज्ञान उगलने की कोशिश करता है जो उसे ब्रह्मराक्षस से हासिल हुआ था पर उसके मुँह से केवल केवल भौं भौं की आवाज ही निकलती है। दो चार घरों के सामने भौंकने के पश्चात उसे ये मालूम पड़ जाता है कि अब वो ब्रह्मराक्षस के अलावा किसी और की भाषा समझ ही नहीं पाता। इस सबके परिणामस्वरूप लोग उसे विद्वान समझने के बजाय किसी के घर से भागा हुआ पालतू कुत्ता समझते हैं और दरवाजे से ही बाहर निकाल देते हैं। कुछ एक घरों में उसने जबरन घुसने की कोशिश की मगर वहाँ से उसे डंडा मारकर बाहर निकाला गया।
बेचारा थका हारा कुत्ता एक दिन वापस ब्रह्मराक्षस की कोठी पर आता है। ब्रह्मराक्षस ये समझ नहीं पाता कि जो कुत्ता उसकी भाषा इतनी आसानी से समझ लेता है और उसकी तारीफ में दुनिया के तमाम शब्दों का एकदम शुद्ध उच्चारण करता है वो बाहर जाकर आम आदमी को न कुछ समझा पाता है न ही आम आदमी की कोई बात समझ पाता है। आखिर क्यों?
-------------------
(स्वरचित एवं अप्रकाशित)
Comment
जय हो .. . यह कहना तो आपकी दरियादिली है भाईसाहब.. .
जय ओबीओ
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी, बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय सौरभ जी, आपके भीतर जो पाठक छिपा है उससे अक्सर मुझे ईर्ष्या होती है। आपमें रचनाओं को पढ़कर उनका विश्लेषण करने की अद्भुत क्षमता है। आप मुझे यूँ ही हर हर मंच पर मिलते रहें और आशीर्वाद देते रहें यही कामना है।
आदरणीय धर्मेद्र जी सादर, बहुत सुन्दर लघु कथा. शब्द शब्द बोल रहा है. ब्रम्हराक्षस ज्ञान के मद में चूर यह भूल ही गया की वह किसे शिक्षा दे रहा है. वाह! बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आपने मेरे पाठकत्व को अनुमोदित किया यह मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है. यनि हम आपकी प्रस्तुतियों को समझ सकते हैं.
सादर
आदरणीय Kewal Prasad जी, Saurabh Pandey जी, Shubhranshu Pandey जी, coontee mukerji जी, बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) जी, Dr.Prachi Singh जी, आप सबने कहानी पढ़ी और अपने विचारों से अवगत कराया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
प्राची जी, ब्रह्मराक्षस का बिंब नया नहीं है। मुक्तिबोध इस बिंब का जूस पहले ही निकाल चुके हैं उनकी कहानियाँ ‘ब्रह्मराक्षस’, ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’ एवं कविता ‘ब्रह्मराक्षस’ जरूर पढ़िये। ’ब्रह्मराक्षस’ एक घिसा पिटा बिंब है इसलिए मैं समझ रहा था कि बिंब तुरंत विद्वानों की पकड़ में आ जायेगा। बहरहाल ये मेरा पूर्वाग्रह भी हो सकता है इसके लिए क्षमा करें।
कुंती जी, ज्ञान का गलत उपयोग वीभत्स ही होता है चाहे वो परमाणु बम हो, एके छप्पन रायफ़ल हो या धर्म के नाम पर सामूहिक कत्ल हों अतः इस पर लिखी कहानी वीभत्स होने पर कैसा आश्चर्य? काश कि गुरु मंत्र और गुरु शिष्य अच्छे सेंस में ही नहीं अच्छे कामों के लिये भी प्रयोग किये जाते। बहरहाल आपके विचारों का स्वागत है और उम्मीद है कि आगे भी आप अपने विचारों से अवगत कराती रहेंगी।
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,
लघुकथा में बिम्ब ज़रूर चौकाने वाले और प्रभावशाली हैं, पर कथ्य की कोइ ठोस पृष्ठभूमि नज़र नहीं आती, इसलिए कुछ अधूरापन सा लगता है... एक पहेली की तरह उलझाती सी अभिव्यक्ति है.
या फिर एक संस्मरण सा लगता है, जिसमें बिम्ब कुत्ते का और ब्रह्मराक्षस का कर दिया गया है...
आदरणीय सौरभ जी नें इसे मठाधीशी की तरह समझा है... यह भी सही है क्योंकि अंधभक्ति और अंधानुकरण ऐसा ही होता है...वास्तविक सांसारिकता की समझ से परे.
मेरी अल्पमति इस उलझे हुए कथन को सुलझाने में असक्षम है... कृपया स्पष्ट करें ..सादर.
आपकी इस रचना पर क्या कहूं। डर है कि कुछ कहने का अर्थ ब्रह्मराक्षस या उसका कुत्ता बनना हो सकता है।
कथा वीभत्सता पैदा करती है।
ये पंक्तियां शायद जो कहना चाह रही हैं वो कह नहीं पा रही हैं। एक बात नहीं समझ आयी कि कुत्ता किसी और की भाषा नहीं समझ पाता कि लोग कुत्ते की भाषा नहीं समझ पाते? मेरे विचार से लोग कुत्ते की भाषा नहीं समझेंगे तभी पालतू कुत्ता समझकर घर से बाहर निकाल देंगे।
//दो चार घरों के सामने भौंकने के पश्चात उसे ये मालूम पड़ जाता है कि अब वो ब्रह्मराक्षस के अलावा किसी और की भाषा समझ ही नहीं पाता। इस सबके परिणामस्वरूप लोग उसे विद्वान समझने के बजाय किसी के घर से भागा हुआ पालतू कुत्ता समझते हैं और दरवाजे से ही बाहर निकाल देते हैं//
सादर!
इस आख्यान में ज्ञान को लेकर बड़ा ही वीभत्स वर्णन है . जहाँ तक कुत्ते की बात है कुत्ता एक स्वमिभक्त जीव है . ब्रह्मराक्षस के चमचों की इस जीव से तुलना ठीक नहीं . कोई दूसरा विकल्प हो सकता था. इस लेख में व्यक्तिगत जलन की बू ज्यादा आ रही है . इसमें बहुत सारी बातें अस्पष्ट है. प्रथम -- ब्रह्मराक्षस कौन ? तथाकथित धर्म के ठेकेदार या गलत फहमी फैलाने वाले सियासी तत्व ? गुरू शब्द महान होता है , इससे ब्रह्मराक्षस जैसे अधर्मी लोगों की तुलना नहीं की जा सकती है . वैसे ही गुरू -शिष्य एवम गुरूमंत्र अच्छे sense में प्रयोग किया जाता है.यह चन्द अल्पबुद्धियों के खेलने की वस्तु नहीं . इस लेख के मूल तत्व का मैं विरोध नहीं करती अपितु कह्ने के तरीके पर आपत्ति प्रकट करती हूँ .
ऎसा ब्रम्हराक्षस समाज से अलग थलग ही रहेगा.चाहे वो इलाका सबसे शानदार इलाका ही क्यों ना हो. समाज में रहने के लिये समाज के साथ चलना पडेगा..आज ऎसे विद्वानों की कमी नहीं है जो अपनी डफ़ली अपना राग बजाते हैं और उनके कथाकथित शिष्य समाज में घूम कर केवल भौंकने का काम करते हैं.गले का पट्टा उन्हे अलग से पहचान दे देताहै. कभी कभी उन्हे पुचकार कर शान्त करा दिया जाता और कभी कभी लात मार कर भगा दिया जाता है.
ब्रम्हराक्षस को जब पता चल जाता था कि सारे शिष्य कुत्ते ही बन गये हैं तो फ़िर उनसे ज्ञान की बात की आशा वह कैसे कर सकता था, यानि ज्ञान की बात तो केवल शब्दों के उच्चारण तक ही रह गयी !
एक सुन्दर रचना...बधाई.
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online