हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है
वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं
हम इंसान हैं
वो आतंकवादी
पर वो नहीं जानते
कि हम पर चलाई गई हर गोली
उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है
हम फिर पैदा हो जायेगें
सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे
पर उनका धर्म एक बार मर गया
तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा
धर्म जान लेने या देने से नहीं
जान बचाने से फैलता है
और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू
किसी भी धर्म को
इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते
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(स्वरचित एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय Yogi Saraswat जी, ram shiromani pathak जी, vijay nikore जी, SANDEEP KUMAR PATEL जी, Kewal Prasad जी, rajesh kumari जी, Ashok Kumar Raktale जी, आप सबने इस रचना को पढ़ा और सराहा इसके लिए आप सबका आभारी हूँ।
पर उनका धर्म एक बार मर गया
तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा
धर्म जान लेने या देने से नहीं
जान बचाने से फैलता है..............बिलकुल सही कहा है.
आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, बहुत अच्छी नसीहत दी है. उत्तम रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकारें.
धर्मेन्द्र जी आज आपकी रचना का मिजाज कुछ अलग ही है दिल की गहराइयों से निकले शब्द पन्नो पे उतर आये हैं बहुत ही अच्छी बाते लिखी हैं हार्दिक बधाई पर इन हत्यारों का ना कोई धर्म ना कोई जमीर होता है इनका हिसाब बस भगवान् की अदालत में ही होता होगा ।
आदरणीय, धर्मेद्र कुमार सिंह जी,
’और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू
किसी भी धर्म को
इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते ’दहशतगर्दों का कोई मजहब नहीं होता है। अच्छी रचना । बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीय धर्मेन्द्र जी:
बहुत अच्छे, सच्चाई से भरपूर ज़ोरदार भाव हैं।
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है!हार्दिक बधाई
धर्म जान लेने या देने से नहीं
जान बचाने से फैलता है
और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू
किसी भी धर्म को
इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते
बहुत बढ़िया ! सुन्दर सन्देश देती हुई रचना
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