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उससे आँख जो मिलानी है..! पर कैसे मिलावे -
अब यही तो हो रही ग्लानी है, दरकार अब
नैतिक शिक्षा ही इसके मानी है |
बाकी तो सब ही मानो बेमानी है -- सुन्दर रचना जिसे पढ़कर ही द्रश्य आँखों के सामने देख गला रुंध जाता है
हार्दिक बधाई आदरनीय श्री गणेशजी बागी जी
आदरणीय गणेश सर जी,बहुत सटीक व्यंग है आपका //मानवता लगता है मर रही है ///
अथार्थ से अवगत कराती रचना//प्रणाम सहित हार्दिक बधाई स्वीकारे।
फोन से इस रचना के संदर्भ में जो कहना था खुल कर कहा अब मौका मिला है कि लिखित रूप से साझा करूँ. जिस दौर से हम गुजर रहे हैं वह दौर राक्षसी व्यवहार के विस्फोट का है. तंदूर में जलाते-जलाते हम बच्चियों की अस्मिता तक आगये हैं.
आगे क्या कहूँ ? आपकी वैचारिक ऊहापोह को मेरा समर्थन.
हार्दिक धन्यवाद हृदय की खिन्नता को स्वर देने के लिए.. .
adarniy bagi aaj ke paripechy ka chitran manodasha ka aaklan aapne bade hi sateek tarike se pesh kiya v bishay ke prati apni sambedna jatai kabile tareef hai badhai
आदरणीय भ्राताश्री बागी सर जी सादर, वर्तमान घटना का घिनौना सच बयां किया है आपने, किस तरह से आपने अपने घायल मन की पीड़ा को शब्दों का रूप दिया है. आपकी लेखनी को मेरा विन्रम प्रणाम. भगवान अब केवल देर ही नहीं अंधेर भी हो गई है कहाँ हो प्रभु जागो.
आ0 गणेशजी बागी जी, कोटि-कोटि नमन! सर जी, अतिसुन्दर और, मन को झकझोरती सार्थक रचना। हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,
आज की बढ़ती पाशविक वृत्तियों पर चोट करती हुई मर्म भेदी रचना, काश! दरिंदों की भी नज़र यहाँ तक पहुँच पाती....
आदरणीय बागी जी, मन को झकझोर देने वाली रचना से मन बहुत व्यथित हो गया है बधाई क्या दूँ, बस आपकी लेखनी को नमन ।...
सहमत हूँ आदरणीय संजय भाई, टिप्पणी हेतु आभार ।
आदरणीय अशोक कत्याल जी, कविता आपको अच्छी लगी यह जान मन गदगद हुआ, बहुत बहुत आभार |
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