गाँव के कच्चे घरों में
जहाँ दीवारों पर
पुती होती है पीली मिट्टी
और ज़मीन पर गेरू,
बच्चे बनाया करते हैं
चित्र,
खींच देते हैं लकीरें
आड़ी-तिरछी,
इधर-उधर ।
फिर जब माँ पोछा लगाती है
लिपाई करती है
मिट्टी और गेरू से,
धुल जाती हैं लकीरें ।
फिर बच्चे चित्रकारी करते हैं
लकीरें खींचते हैं,
फिर माँ लिपाई करती है
और
क्रम अनवरत चलता रहता है ।
शहर के पक्के घरों में
जहाँ दीवारों पर
लगा होता है मँहगा 'पेन्ट'
और ज़मीन पर बिछे होते हैं
'टायल्स',
बच्चे चित्रकारी नहीं करते ।
दीवारों पर कोशिश भी करें
कुछ लिखने की,
तो पड़ जाती है डांट पिता की
और कभी मार भी, यह कहकर -
मकान मालिक आयेगा तो डांटेगा,
बड़ी मुश्किल से मिला है घर
किराये का ।
बच्चों की असँख्य कल्पनाएँ
घुट जाती हैं भीतर ही,
दब जाता है बचपन
मँहगे 'पेन्ट' और 'टायल्स'
की कीमत तले ।
आशीष नैथानी 'सलिल'
हैदराबाद
Comment
प्रिय सलिल जी महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए आपको बहुत-२ बधाईयां और शुभकामनाएं.सुन्दर वर्णों से सजी माला प्यारी गजलें ..........ये कारवाँ यूं ही सतत बढे ...शुभ कामनाएं ...
/
आदरणीय आशीष जी,
सही कहा आपने... बच्चों की कल्पनाओं को उन्मुक्त उड़ान के लिए हम पंख पसारने ही नहीं देते.. बच्चों में सहज अभिव्यक्ति का एक प्रचंड रूप है दीवारों पर लिख देना, विविध आकृतियों को बनाना ...जो आज के बढते शहरीकरण और आलीशान इमारतों में अस्वीकार्य सा हो गया है...
इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
देखिये एक रूप बाल अभिव्यक्ति का.... माँ के दिए गेरू के घोल से बच्चा कैसे फर्श को रंगता है...
आदरणीय Vijay Nikore जी, आदरणीय Kewal Prasad जी
ह्रदय-तल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ !
आदरणीया Usha Taneja जी, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका |
आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी, ये तो बहुत ही अच्छी बात है कि आपके पोते-पोतियाँ कलाकारी करते हैं और आप उनकी कला का अनुमोदन ! :)
कविता पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय !!!
आदरणीय Rajesh Kumar Jha जी । समय के साथ बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है। लेकिन दुखद ये कि शहरीकरण में आज के बच्चे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं । बस कोशिश है इस ओर ध्यान दिलाने की ।
आपको कविता पसंद आई, हार्दिक आभार !!!
बहुत सुन्दर काव्य रचा है आपने अतुकांत काव्य शैली में .....
बचपन के घुट जाने का मार्मिक वर्णन ...
अब आज का जमाना बहुत आगे है ..बच्चे ms वर्ड पे पेंटिंग करने लगे है, और ब्लॉग में स्कैन करा के रातों रात ग्लोबल हो जाते है ..ये बात अलग है की वे बचपन में ही जवान हो जाते है
शुभकामनाये स्वीकारिये आशीष जी!
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई मनोज शुक्ला जी !!!
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी, बहुत-बहुत शुक्रिया सर।
कविता को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ तो लिखना सार्थक हो गया ।
आदरणीय अजय जी, कविता पसंद करने हेतु हार्दिक अभिनन्दन ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online