नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |
उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||
नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |
मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||
क्षुधा तृप्त करता सदा, नद जल सुधा समान |
व्यर्थ खरचता रातदिन, यह पापी इंसान ||
सरि तल बालू देखती, अब सीधे आकाश |
चकाचौंध ने कर दिया, सरिता का ही नाश ||
धार बहे अब अश्क सी, नदिया रुदन छुपाय |
विकसित नद से सभ्यता, अरु नदिया पछताय ||
नदिया पर भी चढ़ गए, लोगों के निज धाम |
खुद ही दावत मौत को, भल करे सियाराम ||
प्रदुषित जल विस्तार से, फैले कितने रोग |
सरकारें मदमस्त हैं, भोगें निर्धन लोग ||
पवित्र नदियों में सभी, बहता प्रदुषित नीर |
सरकारें खामोश हैं, जन-जन उठती पीर ||
जन-जन ही अब ध्यान दे, तब ही पाए नीर |
भागीरथी प्रयास हों, आए मन तब धीर ||
Comment
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बिलकुल सही है पवित्र से जगण दोष आ गया है. मुझे दोहों में जगण दोष से बचने के लिए कोई विशेष तैयारी करनी होगी. यह लगातार मेरी कमजोरी बन रहा है.त्रुटी बताने और छंद के भाव सराहने के लिए आपका सादर आभार.
भाई अरुण जी आदरणीया कुंती जी सादर, सभी नीर के मर्म को जाने यही कामना ले कर यह दोहे रचे हैं. आप तक यह भाव पहुँचे रचना कर्म सफल रहा. सादर आभार.
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी
जल बिन जीवन ही संभव नहीं और यही कीमती संसाधन आज प्रदूषण के कारण संरक्षण की मांग करता है... जल से सम्बंधित विविध आयामों पर बहुत सुन्दर दोहावली प्रस्तुत की है आदरणीय आपने
नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |
उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||................बहुत सुन्दर दोहा, जलाशयों के जीव कहाँ जाएँ, उनका तो पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ही बदल दिया प्रदूषण नें..//उथला जल भी नहीं बचा //निवास ही समाप्त ..बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति
धार बहे अब अश्क सी, नदिया रुदन छुपाय |
विकसित नद से सभ्यता, अरु नदिया पछताय ||............सच है की नदियों के किनारे ही सभ्यताओं का विकास हुआ है, और उसी विकास नें नदियों को सिर्फ अश्क की धार में बदल दिया है...बहुत सुन्दर
प्रदुषित जल विस्तार से, फैले कितने रोग |...........प्रदूषित को प्रदुषित लिखना ठीक नहीं आदरणीय, छंद रचनाओं में इस तरह के समझौतों से बचना चाहिए
सरकारें मदमस्त हैं, भोगें निर्धन लोग ||
पवित्र नदियों में सभी, बहता प्रदुषित नीर |......पवित्र ( १..२..१) जगणसे आरम्भ नहीं करना चाहिए विषम चरण का, और प्रदुषित पर यहाँ भी गौर करें.
सादर शुभकामनाएं
आदरणीय अशोक जी बहुत सुन्दर सार्थक दोहे रचे हैं शिक्षाप्रद । पवित्र नदियों में सभी,इस दोहे के विषम चरण में जगण दोष आ गया है पवित्र की जगह पावन कर सकते हैं ,बहुत बहुत बधाई आपको
बिगड़ते प्राकृतीक माहौल पर बहुत ही सशक्त लेखनी चलायी है आपने रक्ताले जी . आशा है ओ बी ओ से बाहर भी आपकी बात विस्तार
पकड़े और सभी के कानों में यह बात घंटियों की तरह बजे . /आज समय बहुत तेजी से हमें बहुत कुछ इशारा कर रहा है ......पता नहीं कब देश
की नदियों शुद्ध से प्लावित होगी ?/सादर / कुंती.
वाह आदरणीय अशोक सर जी वाह सभी के सभी दोहे बेहद सुन्दर सत्य एवं सटीक कहे हैं आपने, शिक्षाप्रद दोहों हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें मुझे कहीं कहीं प्रवाह बाधित लगा आप भी देख लें कृपया अन्यथा न लें. सादर
आदरणीय श्याम जी, आदरणीय राजेश जी आदरणीय लड़ीवाला साहब आदरणीय केवल प्रसाद जी आप सभी का हार्दिक आभार.
आदरणीय लड़ीवाला साहब आपके प्रतिक्रया दोहे की हेट्रिक से मन मुग्ध हुआ. यूँ ही स्नेह बनाए रखें.
आ0 रक्ताले जी सर, अतिसुन्दर दोहे । ’’जन.जन ही अब ध्यान दे, तब ही पाए नीर। भागीरथी प्रयास हों, आए मन तब धीर।।’’ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
रक्ता जी सच कह रहे, बहा न प्रदुषित नीर
प्रदुषित जल विस्तार से,बढे मनुज के पीर
उम्मीद नहि सरकार से, जागो हे श्रमवीर,
श्रमदानी जन जन बने, तभी मिलेगा नीर |
इन दोहो का मान रख, चाहे गर कल्याण
तभी बचोगे मौत से, भली करेंगे राम |
अच्छा सन्देश देते बहुत उत्तम दोहों के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री अशोक रक्ताले जी
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