जो जुटाते अन्न, फाकों की सज़ा उनके लिए।
बो रहे जीवन, मगर जीवित चिता उनके लिए।
सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम,
नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए।
जोड़ते जो मंज़िलें, माथे तगारी बोझ धर,
तंग चालों बीच जुड़ता, घोंसला उनके लिए।
झाड़ते हैं हर गली, हर रास्ते की धूल जो,
धूल ही होती दवा है, या दुआ उनके लिए।
गाँव वालों के सभी हक़, ले गए लोभी शहर,
सिर्फ सूनी गागरी, ठंडा तवा उनके लिए।
क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल,
भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।
*'शहर' शब्द का वज़न हिन्दी उच्चारण के अनुसार १+२लिया है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
प्राची जी, बहुत बहुत धन्यवाद...
बहुत सुन्दर गज़ल हुई है आ० कल्पना रामानी जी .. हर शेर अपने कथ्य और संवेदना से हृदय में जगह बनाने में सक्षम है...
हार्दिक बधाई
मनोज जी, केवल प्रसाद जी, आपकी स्नेहपूर्ण सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। अब हम एक ही परिवार के सदस्य हैं, मेरे नाम के आगे कृपया आदरणीय न लगाएँ। 'जी' से स्वतः ही आदर का बोध हो जाता है। अपना सहज स्नेह बनाए रखिए...
वीनस जी, धीरे धीरे हर बात याद होती जाएगी। कोशिश यही रहेगी कि फिर वही भूल न हो। एक बात और...
मतले के शे'र में अगर काफिया ता, ना, नी आदि हो तो उससे पूर्ववर्ती शब्द अलग अलग हो सकता है या नहीं। जैसे--
कविता, कटुता चाँदनी, रागिनी या फिर एक जैसा रखना चाहिए जैसे कविता-सरिता,रागिनी-मालिनी आदि। अभी काफिया के बारे में लेख भी पढ़ूँगी। वहाँ होगा तो मालूम हो जाएगा। इस महीने के तरही मिसरे की बहर देख ली है, तीन चार शे'र बन चुके हैं। कोशिश करूंगी कि गलती न हो, फिर भी पहली कक्षा की छात्रा हूँ, गलतियाँ स्वाभाविक हैं। यह तो समझ में आ गया कि गिरे हुए शब्द को लघु माना जाएगा, बस प्रयोग करते समय याद रहना चाहिए। आपका हार्दिक धन्यवाद...
कल्पना जी,
यदि गए में ए गिर भी सकता तो दो सवतंत्र लघु बनते अर्थात ११, मात्रा बनती
जैसे कभी - १२ में भी को गिराने पर ११ बनता है| इनको जोड़ कर २ की जगह इस्तेमाल नहीं कर सकते
जैसा कि पिछली तरही में देखा गया शाश्वत २ को स्वतंत्र ११ नहीं कर सकते उसी तरह स्वतंत्र ११ को २ नहीं किया जा सकता है
हाँ कुछ बहर के आख़िरी रुक्न की शुरुआत में २ की जगह ११ भी स्वीकार्य है वहाँ पर ऐसे शब्दों को प्रयोग किया जा सकता है
(मई माह के तरही मुशायरा में ऐसी ही बहार चुनी गयी है और इसके विषय में बताया गया है आप आयोजन की पोस्ट को देख सकती हैं)
विनम्र निवेदन है कि मेरे लिए आदरणीय न लगाया करें
सादर
आदरणीय वीनस जी, आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है। मैं सोच रही थी कि शायद 'गए'में 'ए'की मात्रा गिर सकती है। अभी मेरा लेखन कमजोर ही है। यह गलती फिर कभी नहीं होगी अभी सुधार कर दिया है। आपका हार्दिक आभार...
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।
आ0 रामानी जी, क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल,
भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।.. बहुत ही सुन्दर गजल। हार्दिक आभार स्वीकारें। सादर,
आदरणीया कल्पना जी आपके पथ पर मैं भी आपका अनुसरण कर रहा हूं। हिन्दी का प्रचार प्रसार मेरा भी उद्देश्य है। आपकी लगन और हिन्दी प्रेम से सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। मैं तो आपका अनुयायी हूं ही। आशा है आप मेरा पथ प्रदर्शन करती रहेंगी। सादर!
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