सखि,चैत्र गया अब ताप बढ़ा।
धरती चटकी सिर सूर्य चढ़ा।
ऋतु के सब रंग हुए गहरे।
जल स्रोत घटे जन जीव डरे।
फिर भी मन में इक आस पले।
सखि पाँव धरें चल नीम तले।
इस मौसम में हर पेड़ झड़ा।
पर, मीत यही अपवाद खड़ा।
खिलता रहता फल फूल भरा।
लगता मन मोहक श्वेत हरा।
भर दोपहरी नित छाँव मिले।
सखि झूल झुलें चल नीम तले।
यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।
यह पूजित है वरदायक है।
अति पावन प्राणहवा इसकी।
मन भावन शीतलता इसकी।
इक दीप धरें हर शाम ढले।
सखि, गीत गुनें चल नीम तले।
यह जान बड़े गुण हैं इसके।
नित सेवन पात करें इसके।
यह खूब पुरातन औषध है।
कड़वा रस शोणित-शोधक है।
हर गाँव शहर यह खूब फले।
हर रोग मिटे सखि नीम तले।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
हार्दिक धन्यवाद आपका अनुराग जी
सादर
हर रचना कि तरह फिर एक नायाब रचना हेतु बधाई
बड़ी सटीकता से वर्णन किया आपने नीम का
यह जान बड़े गुण हैं इसके।
नित सेवन पात करें इसके।
यह खूब पुरातन औषध है।
कड़वा रस शोणित-शोधक है।
हर गाँव शहर यह खूब फले।
हर रोग मिटे सखि नीम तले
आदरणीय अशोक कुमार जी, मन से रचना की सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
आदरणीय सौरभ जी मैं हर बात समझ सकती हूँ, इतने व्यस्त रहते हुए भी हर क्षेत्र में सक्रिय बने रहना मामूली बात नहीं है। आप जैसे साहित्य को समर्पित विद्वानों का हृदय से अभिवादन करती हूँ। देश विदेश के अलग अलग कोने और परिवेश में रहते हुए भी यहाँ इस तरह जुड़ जाते हैं जैसे एक ही परिवार के हों। आज इन्टरनेट न होता तो मैं इस सुंदर दुनिया से कभी परिचित ही न हो पाती। सचमुच इस मंचपर आने के बाद एक नई ऊर्जा प्रवाहित होने लगी है। आपका हार्दिक धन्यवाद....
आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर,नीम के गुणों के बखान के साथ ही रचना के शिल्प और प्रवाह ने तो कमाल ही कर दिया है.बार बार गाने को दिल कर रहा है.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मनमोहक है. सादर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीया कल्पनाजी, सुन कर अच्छा लगा कि आपकी इस विधा में दो और रचनाएँ हैं. मेरी या कहिये हमसब की सबसे बड़ी विवशता समयाभाव है. मैं सोमवार को वाराणसी में था, उसी दरम्यान कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गाँव लमही जाने का शुभ अवसर मिल गया. हो आया. कल ही कुछ चित्र भी अपलोड किये हैं मैंने. आज पुनः कलकत्ता में हूँ कल हो सकता है बीरभूम जिले के दुबराजपुर में रहूँ. इस कारण कई-कई समृद्ध रचनाएँ दृष्टि में आने से रह जाती हैं. आ भी जाती हैं तो ऐसी रचनाओं पर इत्मिनान से प्रतिक्रिया दूँगा ऐसा सोच कर स्वयं ही रुक जाता हूँ और देर हो जाती है.
विश्वास है, आदरणीया, आप मेरी या मेरे जैसों की कार्यालयी विवशता को भी समझियेगा.
सादर
आ॰ सौरभ जी गीत की इतनी प्रशंसा सुनकर मैं हैरान हूँ। मैं तो गलतियों की संभावना को लेकर इंतज़ार में थी कि आपकी कब क्या प्रतिक्रिया आएगी। अब कुछ आश्वस्त हुई हूँ। पहले भी दो गीत लिखे थे लेकिन समीक्षा के बिना संतुष्टि नहीं हो पा रही थी। नया प्रयोग और आप लिखो आप ही बाँचो वाली बात थी। आपका हार्दिक आभार।
इस गीत पर आपको बधाइयाँ दूँ, आदरणीया कल्पनाजी, उससे पहले एक-दो बातें अवश्य करना चाहूँगा जो सतत और दीर्घकालिक प्रयास के प्रति आपके समर्पण भाव के प्रति मेरा नमन होगा.
नवगीत की धारा कवि द्वारा स्वयं ही तय मात्रिकता से लेकर पहले से उपलब्ध सूत्रों और मात्रिकता के नियमों में अपने अनुसार मात्रिकता को चयनित कर लेने के पाटों के बीच से बहती है. यही तो नवगीत के किसी रचनाकार के प्रयास को अभिनव बनाता है.
जहाँ कुअँर बेचैन, शेरजंग आदि-आदि ग़ज़लों के बह्र को अपने हिसाब से रूप दे कर नवगीत को बहाव दे रहे थे, वहीं नईम, रमानाथ अवस्थी, माहेश्वर तिवारी आदि-आदि उपलबध मात्रिकता को स्वेच्छा से नियत कर या अपने ढंग से पंक्तियाँ तय कर नवगीत की लहरों को आवेग दे रहे थे. प्रयोग भी तो कैसे-कैसे ?! दोहे के मात्र विषम चरण को लेकर या हरिगीतिका छंद के पद का प्रथम भाग या किसी सवैया को तोड़ कर या कुछ इसी तरह की मात्रिकता का निर्वहन होता था.
आपकी प्रस्तुत रचना में मुखड़ा अंतरा सबका उचित निर्वहन हुआ है. निर्वहन भी क्या, खड़ी हिन्दी में इतने सुन्दर और प्रौढ पद बने हैं कि मेरे लिए सुखद आश्चर्य है ! आपके प्रयास को मेरा सादर नमन.
आपका यह नवगीत उन सभी रचनाकारों के लिए ठोस उदाहरण की तरह इस मंच पर उपलब्ध हुआ है जो मात्रिकता के नाम पर अभी तक या तो असहज हैं, या यही तय नहीं कर पा रहे हैं कि संप्रेषण सिर्फ़ सुनाना होता है या सुनना भी होना चाहिये.
इस रचना के शिल्प पर मैं क्या कहूँ आदरणीया. बस मुग्ध हूँ. दुर्मिल सवैया का इतना सुन्दर प्रयोग इस संप्रेषण में हुआ है कि बार-बार मुँह से वाह निकल रहा है.
सादर
कविता जी, कुंती जी, हार्दिक आभार...
आदरणीय मित्रों, केवल प्रसाद जी, शालिनी कौशिक जी, राजेश कुमारी जी, राम शिरोमणि जी, सीमा जी, शालिनी रस्तोगी जी, श्याम नरेन जी, प्रदीप कुमार जी, राजेश जी, कविता जी, आप सबका रचना को स्नेह देने और सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
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