तुमने जो भी बात कही थी
सबको माना तेरे बाद
हो गई अपनी पीर पराई
हँस के जाना, तेरे बाद
बोझिल राते खुल के बोलीं
दिन बतियाया तेरे बाद
तेरे रहते था मैं बूढ़ा
खिली जवानी तेरे बाद
तुझे देख जो बादल गरजे
जमकर बरसे तेरे बाद
हो गई सारी दरिया खारी
रो-रो जाना, तेरे बाद
तेरे रहते दर-दर भटका
मंजिल पाई तेरे बाद
हाथों की वो चंद लकीरें
बनीं मुकद्दर तेरे बाद
यह भी तेरी रही नवाजिश
मंदिर पहुंचा तेरे बाद
बुत पूजे औ मन्नत मांगी
हो गया काफि़र तेरे बाद
यूं तो अक्सर रहा अकेला
तन्हा रह गया तेरे बाद
मुझको मैंनें बेदम पाया
हरपल जाना तेरे बाद
तेरे रहते दर्पण थे जो
बन गए शीशे तेरे बाद
मेरा मैं मुझसे घबराया
पल-पल जाना तेरे बाद
तुमने जितने दीप जलाए
बन गए तारे तेरे बाद
तेरी मेरी बातें करती
मिट्टी, पानी, तेरे बाद
अब तो सारे दर्द मरे हैं
कोयल भी चुप तेरे बाद
सारे भय सारी आशंका
खुद ही भागी तेरे बाद
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
//तुमने जितने दीप जलाए
बन गए तारे तेरे बाद
तेरी मेरी बातें करती
मिट्टी, पानी, तेरे बाद// ......बहुत सुन्दर भाव हैं।
सरस हृदयस्पर्शी रचना हेतु बधाई, राजेश जी।
सादर,
विजय निकोर
आ0 राजेश जी, वास्तविकता यही है- किसी को जानने के लिए उससे दूर जाना पड़ता है। तभी सच्चाई और अहमियत का पता चलता है। एक सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
अहा! सुन्दर और सुघड़ रचना ...:))))) आदरणीय राजेश जी!
क्या ये नवगीत है?
सादर गीतिका 'वेदिका'
बहुत सुंदर रचना ...बधाई
तेरे रहते दर्पण थे जो
बन गए शीशे तेरे बाद
मेरा मैं मुझसे घबराया
पल-पल जाना तेरे बाद
तुमने जितने दीप जलाए
बन गए तारे तेरे बाद
तेरी मेरी बातें करती
मिट्टी, पानी, तेरे बाद
बहुत सुंदर, राजेश जी...हार्दिक बधाई
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