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मेरे हित

सच है मां तुमने

केवल जन्‍नत

मांगी थी

सच कहना पर

कब बहना हित

कोई मन्‍नत

मांगी थी ?

सदा-सर्वदा

तेरा पूजन

रहा पिता या

मेरे नाम

बहना का पर

रहा हमेशा

एक वहीं

सबका श्रीराम

सच कहना

कब उसकी खातिर

कितनी चौखट

लांघी थी

सदा सर्वदा

मेरी खातिर

दुआ नहीं क्‍या

मांगी थी ?

और सास बन

तुमने ही तो

कितने ताने

मारे थे

पहली पोती

आई थी जब

किसने बुक्‍के

फाड़े थे ?

शेष कथा जो

सच है सुन लो

पिता तभी

मुस्‍काए थे

आया था जब

पोता तेरा

शिव अभिषेक

कराए थे

जग कहता

तेरे आंचल में

ममता की

गुड़धानी है

पर मुझको यह

वह दरिया है

जिसमें चयनित

पानी है !

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by वेदिका on June 6, 2013 at 8:22pm

आपको बहुत बहुत बहुत शुभकामनायें आदरणीय राजेश जी!

आपने उस पक्ष पे प्रकाश डाला है जिसको कोई भी लड़का अनदेखा करता है ..या उसकी दृष्टी में उस पीड़ा का कोई मुल्य नही होता।  आपके साहस की दाद देनी पड़ेगी। 

ममता का यह रूप बहुत समय से सामने है, लेकिन इसको स्वीकार नही किया जाता बल्कि ये कह के टाल दिया जाता है की कितने दिन और माता का जीवन है ...४ या ५ साल। सहन कर लोगी तो क्या बिगड़ जायेगा। अगर यही ४ या ५ साल अगर प्रेम से बिताते है तो क्या बिगड़ जाता है? 

क्या ये मानसिक विषमताओं भरे प्रश्न केवल कवियों के ही हिस्से है ..आम इन्सान क्या सोचता होगा?

शुभकामनायें सादर      

Comment by राजेश 'मृदु' on May 16, 2013 at 11:21am

आदरणीय रक्‍ताले साहब, इस रचना में मैने भोगे हुए सच को ही लिखा है बाकी सब आप सबके सामने है, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on May 16, 2013 at 11:19am

आदरणीय सौरभ जी, आपका मार्गदर्शन मिलता रहे यही कामना सतत रहती है, स्‍नेह बनाए रखें, सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 10:02pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी,  नारी के प्रति नारी के नजरिये पर सवाल करती सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें.बहुत सुन्दर रचना.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2013 at 9:14pm

आदरणीय राजेशभाईजी. आपकी सार्थक संवेदनशीलता और रचना के कथ्यों से संसृत होता अदम्य साहस कई बार मन को नत कर देता है. आपके गीतों के कथ्य हर हाल में ठोस हुआ करते हैं.

जिस साहस से आपने इस नवगीत में भी प्रश्न किये हैं, वह भी परिवार की उस इकाई से जिसके प्रति सामान्यतया भावनाएँ तनिक भी उथली होने से बचती हैं, आपके कवि के मानसिकतः अत्यंत स्पष्ट होने का परिचायक है.

आदरणीय, किसी रचनाकार का दायित्व भी यही है कि समाज की कुरीतियों को मात्र इंगित न करे बल्कि हर उस उत्स को भी बेदर्दी से बेनकाब करता चले और फिर उसे तहस-नहस करने केलिए समाज को को सुप्रेरित करे जिसके कारण सामाजिक विसंगतियाँ ’राक्षस की जट’ बनी हुई हैं, मरने का नाम ही नहीं ले रही.

यह उतना ही सत्य है कि आज परिवारों की घटिया सोच पूरे समाज के स्वरूप को बिगाड़ने का कारण बना हुआ है. इस सत्यानाशी वैचारिकता को बूँद-बूँद जल-खाद देने का घिनौना काम गाँव-घरों के दालानों और चुल्हानियों में ही होता है जहाँ का निरंकुश शासन किसी औरत के ही हाथों में हुआ करता है. उस औरत का एक पहलू तो अवश्य ही ममतामयी माँ का होता है जिसे सभी जानते और मानते हैं, लेकिन उसका दूसरा पहलू उस इकाई का होता है जिसकी खौफ़नाक और तिर्यक दृष्टि से कोमल भावनाएँ थर्रा तो क्या जाती हैं, कई-कई बार समूल नष्ट होजाती हैं.  हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों, जहाँ पिता/ पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था कितनी ही विसंगतियों का कारण है, में वास्तविक कुंजी महिलाओं के हाथों में ही है. वर्ना अबोली कन्याएँ सूरज की रौशनी देखने से पहले कलवित न हो जातीं. या बच जाने पर भी ज़हालत की ज़िन्दग़ी जीने को विवश न होतीं.

शिल्प और मात्रिकता के लिहाज से अत्यंत समृद्ध इस नवगीत के लिए बार-बार बधाई और हृदय से साधुवाद, भाईजी. पदों के शब्दों में प्रवाह और तदनुरूप शब्द-संयोजन सदा से आपकी प्रस्तुतियों की विशिष्टता रहे हैं. इस गीत में ये कुछ और निखर कर सामने आये हैं.

इस प्रखर और तेज़ाबी कथ्य के लिए आपका पुनः सादर अभिनन्दन.

शुभम्

Comment by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 6:49pm

सादर नमन आदरणीय विजय जी

Comment by vijay nikore on May 14, 2013 at 6:05pm

आदरणीय राजेश जी:

 

आपने वास्तविक्ता की कढ़वाहट  अच्छी दिखाई है।

बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 3:26pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी, शालिनी जी, कुंति जी एवं प्रदीप जी आप सबके अनुमोदन हेतु आभार

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 1:37pm

जग कहता

तेरे आंचल में

ममता की

गुड़धानी है

पर मुझको यह

वह दरिया है

जिसमें चयनित

पानी है !

बहुत खूब, सादर बधाई 

Comment by coontee mukerji on May 14, 2013 at 11:13am

एक  चेहरा , दो पहलू ....जितना  भी कहें कम है .. ....लेकिन क्या  हम इतने सीधे और स्पष्ट कह सकते हैं .......भाई  राजेश  यह बड़ी हिम्मत वाला काम है . आपने  समाज का एक मुखौटा बड़ी दिलेरी से उजागर किया है . / सादर  / कुंती .

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