हर रात
देखता हूं
एक नदी का सपना
जो भरती है
निर्मल धार
उष्ण अंतस की गहराई तक
नसों में बहते लावे
जिसके घने स्पर्श से
जीवंत हो उठते हैं
पर आंख खुलते ही
घबरा जाता हूं
जब देखता हूं
जलती रेत पर
फड़फड़ाते अंश को
और देह भी तब
भिनभिनाने लगती है
थके डैने थाम पंछी
भी तो सुस्ताते नहीं
और फिर
पन्नों पर दिखती है
दरिया की लकीरें
सिमटी हुई
इंच दर इंच
खूशबू के अधजले दाने
तितलियों के जले पंख
आकाशफूल
तब भी मुस्कुराते हैं
जाने किस अहसास से
खिन्न मन
ढकेल देता है
फिर से
उसी राह पर
और तब पाता हूं
कि प्रवाह बाधित नहीं था
कि खुली आंखें
देख नहीं पाती
उस धार को
जो सपने की
नदी रचती है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सुन्दर रचना आदरणीय राजेश जी सादर बधाई स्वीकारें.
आप सभी का हार्दिक आभार
आदरणीय वृजेश जी, आपका हार्दिक आभार कि आपने रचना को इतनी तन्मयता से पढ़ा । जहां तक लावे के जीवंत होने का प्रश्न है तो तप्त तरलता में दाह के वाहक ही जीवंत रह सकते हैं पर मानव को जिस तरलता की आवश्यकता होती है वह मृदुता का पोषक है, उसं ऊष्मा तो चाहिए पर दाहकता नहीं । नदी में ऊष्मा तो होती है पर दाहकता नहीं होती, इसी कारण मैंने नदी के निर्मल धार से उसके जीवंत होने की बात रखी है । दूसरे, थके डैने थाम पंछी/सुस्ताते भी तो नहीं - ऐसा करने सिर्फ पंछी तक आकर बात खत्म हो जाती है जबकि वहां अन्य भी कोई है जो सुस्ता नहीं रहा, उस अन्य को प्रकट करने के लिए ही 'पंछी भी तो' रखा गया है । सादर
बहुत ही सुन्दर रचना है आदरणीय। मन बहता ही चला गया कविता के प्रवाह के साथ।
आपकी रचना की कुछ पंक्तियों से कुछ शंका उपजी है जिसके संदर्भ में आपसे मार्गदर्शन चाहूंगा।
//नसों में बहते लावे
जिसके घने स्पर्श से
जीवंत हो उठते हैं//
मेरे विचार से लावे जीवंत ही होते हैं मरे हुए नहीं। आपका इस विषय में क्या सोचना है यह मेरे लिए उत्सुकता का विषय होगा।
//भी तो सुस्ताते नहीं//
यह पंक्ति यदि कुछ इस तरह होती तो शायद मेरे विचार से अधिक उपयुक्त होती।
‘सुस्ताते भी तो नहीं’
आशा है आप इन्हें मेरी आपत्तियां न मानकर अपने ज्ञान से मुझे भी सिंचित करने का कष्ट करेंगे।
सादर!
बड़ा प्रवाह है इस स्वपन सरिता में
सादर बधाई हो आदरणीय
पर आंख खुलते ही घबरा जाता हूं
जब देखता हूं जलती रेत पर
फड़फड़ाते अंश को
और देह भी तब भिनभिनाने लगती है
थके डैने थाम पंछी भी तो सुस्ताते नहीं - बहुत खूब सुन्दर भाव प्रवाह के लिए बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा
अति सुन्दर
सादर बधाई
बहुत सुन्दर
सादर आभार आदरणीय श्याम नारायण जी एवं विजय निकोर जी
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