For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर रात

देखता हूं

एक नदी का सपना

जो भरती है

निर्मल धार

उष्‍ण अंतस की गहराई तक

नसों में बहते लावे

जिसके घने स्‍पर्श से

जीवंत हो उठते हैं

पर आंख खुलते ही

घबरा जाता हूं

जब देखता हूं

जलती रेत पर

फड़फड़ाते अंश को

और देह भी तब

भिनभिनाने लगती है

थके डैने थाम पंछी

भी तो सुस्‍ताते नहीं

और फिर

पन्‍नों पर दिखती है

दरिया की लकीरें

सिमटी हुई

इंच दर इंच

खूशबू के अधजले दाने

तितलियों के जले पंख

आकाशफूल

तब भी मुस्‍कुराते हैं

जाने किस अहसास से

खिन्‍न मन

ढकेल देता है

फिर से

उसी राह पर

और तब पाता हूं

कि प्रवाह बाधित नहीं था

कि खुली आंखें

देख नहीं पाती

उस धार को

जो सपने की

नदी रचती है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 626

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2013 at 8:29am

सुन्दर रचना आदरणीय राजेश जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by राजेश 'मृदु' on May 17, 2013 at 2:59pm

आप सभी का हार्दिक आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on May 17, 2013 at 2:58pm

आदरणीय वृजेश जी, आपका हार्दिक आभार कि आपने रचना को इतनी तन्‍मयता से पढ़ा । जहां तक लावे के जीवंत होने का प्रश्‍न है तो तप्‍त तरलता में दाह के वाहक ही जीवंत रह सकते हैं पर मानव को जिस तरलता की आवश्‍यकता होती है वह मृदुता का पोषक है, उसं ऊष्‍मा तो चाहिए पर दाहकता नहीं । नदी में ऊष्‍मा तो होती है पर दाहकता नहीं होती, इसी कारण मैंने नदी के निर्मल धार से उसके जीवंत होने की बात रखी है । दूसरे, थके डैने थाम पंछी/सुस्‍ताते भी तो नहीं - ऐसा करने सिर्फ पंछी तक आकर बात खत्‍म हो जाती है जबकि वहां अन्‍य भी कोई है जो सुस्‍ता नहीं रहा, उस अन्‍य को प्रकट करने के लिए ही 'पंछी भी तो' रखा गया है । सादर

Comment by बृजेश नीरज on May 16, 2013 at 11:49pm

बहुत ही सुन्दर रचना है आदरणीय। मन बहता ही चला गया कविता के प्रवाह के साथ।

आपकी रचना की कुछ पंक्तियों से कुछ शंका उपजी है जिसके संदर्भ में आपसे मार्गदर्शन चाहूंगा।

//नसों में बहते लावे

जिसके घने स्‍पर्श से

जीवंत हो उठते हैं//

मेरे विचार से लावे जीवंत ही होते हैं मरे हुए नहीं। आपका इस विषय में क्या सोचना है यह मेरे लिए उत्सुकता का विषय होगा।

//भी तो सुस्‍ताते नहीं//

यह पंक्ति यदि कुछ इस तरह होती तो शायद मेरे विचार से अधिक उपयुक्त होती।

‘सुस्ताते भी तो नहीं’

आशा है आप इन्हें मेरी आपत्तियां न मानकर अपने ज्ञान से मुझे भी सिंचित करने का कष्ट करेंगे।

सादर!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 16, 2013 at 3:08pm

बड़ा प्रवाह है इस स्वपन सरिता में
सादर बधाई हो आदरणीय

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:26pm

पर आंख खुलते ही घबरा जाता हूं

जब देखता हूं जलती रेत पर

फड़फड़ाते अंश को

और देह भी तब भिनभिनाने लगती है

थके डैने थाम पंछी भी तो सुस्‍ताते नहीं - बहुत खूब सुन्दर भाव प्रवाह के लिए बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 15, 2013 at 1:36pm

अति सुन्दर 

सादर बधाई 

Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 1:57am

बहुत सुन्दर 

Comment by विजय मिश्र on May 14, 2013 at 6:51pm
जिंदगी में सच और सपने का तफरका इतना सही बना है और फिर संघर्ष करता यह छोटा सा मन . सत्य ही बहुत सुंदर रचना राजेशजी .
Comment by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 6:51pm

सादर आभार आदरणीय श्‍याम नारायण जी एवं विजय निकोर जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service