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वाह रे खुदा!

हैरान हूँ तेरी खुदाई देखकर;

तेरी मेरी भावना से 

मानव की पाटी खाई देखकर|

ना उसे मिला कुछ

ना ही कुछ इसे मिला;

फिर क्या बकवास नहीं

दुश्मनी का ऐसा सिला?

चिराग जला करे घर रोशन 

अपने घर की मुंडेरों से;

तो क्या खता, गर रहबर कोई

बचाए खुद को ठोकरों से?

पर नहीं, बिलकुल नहीं

मानव को यह सुहाता नहीं;

अपना घर रोशन भले ना हो

दूसरे को रास्ता दिखाना भाता नहीं|

आज की पारी तेरे नाम तो क्या

कल के बाद परसों भी आएगा;

मत भूल ऐ रे मानव!

तब क्या खुद को पहचान पायेगा?

- उषा तनेजा  

मौलिक एवं अप्रकाशित  

 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 7:40pm

बहुत सुन्दर भाव रचना प्रस्तुति की है है आपने उषा तनेजा जी, हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 5, 2013 at 3:42pm

बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने आदरणीया, सच का आईना कितना भी सुन्दर हो पर आज का प्राणी देखना नहीं चाहता, भले स्वयं कैसे भी हो परन्तु दूसरों को उपदेश देना नहीं भूलता. इस सुन्दर रचना हेतु मेरी बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:36pm

आदरणीया उषा तनेजा जी सादर, सुन्दर रचना आपकी रचना में उर्दू शब्दों के प्रयोग को देखते हुए लगता है आप की उर्दू की जानकारी अच्छी है. आप गजल रूप में रचनाएं प्रस्तुत करेंगी तो शायद भाव और निखार लें. सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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