क़ृष्ण तुम बंसी बजाना
उन्मुक्त हो मुक्त गगन में,
छेड़ू मैं कोई तान प्यारी,
मधुर रस भरी प्रेम की,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
गाएँगे सब पशु-पक्षी ,
आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,
बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
भक्ति रस घुलेगा हवाओं में,
पहुँचेगा वृंदावन की गलियाँ,
नाचेगी सब गोपियाँ वहाँ ,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
जग जायेंगे योगी ध्यान से,
करेंगे भक्ति का मद पान ,
मदहोश करके सबको,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
प्रेम फैले इस जहाँ में,
टूट जायें दीवारें सब,
झूमें सब तुम्हारे प्रेम में,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
एक दूसरे से प्रेम हो,
लगाव हो, जुड़ाव हो,
मिलकर गायें भक्ति का गीत,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
Comment
परम आदरणीय पाण्डेय जी,मैंने छह महीने पहले से लिखना चालू किया हूँ ।इससे पहले मैंने एक शब्द भी कहीं नहीं लिखा था ।आपके मार्गदर्शन में लिखने से जरूर सुधार आएगा ,ऐसी मेरी उम्मीद है ।सुभेच्छा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ,सर
आपके लेखन तथा आपकी लेखकीय संभावनाओं के आलोक में बहुत कुछ दख रहा है जिसके निर्वहन का दायित्व आप पर ही है, भाई अखिलेशजी. शुभेच्छाएँ
बहुमूल्य सुझाव के लिए आदरणीय बृजेश नीरज जी को बहुत-बहुत धन्यवाद ।मैं लिखने में नया हूँ इसलिए ऐसे सुझाओं कि बड़ी आवश्यकता है ।भविष्य की रचनाओं में ध्यान रखूँगा ।
कृष्ण का नाम ही ऐसा है कि सुन के मन मस्त हो जाता है। उनकी लीलायें अपरंपार हैं। तभी भक्त बारबार उनसे उत्कंठा के साथ लीला रचने की प्रार्थना करता है। बहुत सुन्दर प्रयास आपका। बधाई आपको।
एक निवेदन कि यदि आपकी रचना मात्रा गणना करके लिखी जाती तो इसकी सुन्दरता और भी अधिक होती।
इस मंच पर भारतीय छंद विधान समूह के लेखों को पढ़ें।
सादर!
धन्यवाद लड़ीवाला जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद कुशवाहा साहब हौशला अफजाई के लिए ।
राधे राधे
सुन्दर
सादर बधाई
एक दूसरे से प्रेम हो,
लगाव हो, जुड़ाव हो,
मिलकर गायें भक्ति का गीत, - सुन्दर रचना के माध्यम से अच्छा सन्देश बधाई अखिलेश जी
मैडम शलिनी कौशिक जी,भाई केवल प्रसाद जी,मैडम कविता वर्मा जी हौशला बढ़ाने के लिए धन्यवाद ।
भाई श्याम नारायण वर्मा जी सादर आभार ।
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