ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।
सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।
हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।
गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए ।
नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।
घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।
रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।
मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।
आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।
Comment
बहुत आभार श्री योगेन्द्र जी ! ग़ज़ल आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ , स्नेह बना रहे यही कामना है !
बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल ॥
हर एक शेर बहुत खूब है
घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।
रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।
मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।
अति सुंदर
आदरणीय श्री बागी जी भाव पसंद आये , बहुत बल मिला आभार आदरणीय !!
//मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।//
इस जोरदार कहन पर वाह वाह, दाद देता हूँ ।
बहुत आभार आदरणीय जवाहर जी !!
बहुत ही सुंदर गजल आज के सन्दर्भ में
नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।
हार्दिक बधाई!
बहुत बहुत धन्यवाद श्री नीरज जी !!
आदरणीय श्री अशोक जी ग़ज़ल के शेर आपको पसंद आये हार्दिक आभार आपका !!
गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए..........नैतिकता के अवमूल्यन पर सुन्दर शेर कहा है.
सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।..........हकीकत को आइना दिखाता सुन्दर शेर. वाह!
आदरणीय अभिनव अरुण जी सदर बधाई स्वीकारें.
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