बन गया हूँ भिखारी ,लगी थी प्रेम बीमारी !
थोड़ी दया दिखाकर ,मुझको बचाइये !
मुझको ऐसा निचोड़ा ,अब कहीं का ना छोड़ा !
जान बच जाय ऐसी ,युक्ति तो बताइए !!
माना गलती हो गयी ,थोड़ी देर कर गया !
बालक समझकर ,कष्ट से उबारिये !
कान पकड़कर अब ,माफ़ी मांगता हूँ भाई !
दुर्दशा को देखकर ,हंसी ना उड़ाइए !
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सुंदर प्रयास है भाई साहब किंतु आदरणीय अशोक सर के कहे से सहमत हूँ
गेयता कुछ बाधित है प्रयासरत रहिए
बधाई हो इस सृजन हेतु
आदरणीय अशोक सर आगे से ध्यान दूंगा //हार्दिक आभार
भाई राम शिरोमणि जी घनाक्षरी पर सुन्दर प्रयास हुआ है, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें, किन्तु मित्र गेयता बहुत बाधित लग रही है.
आ0 राम शिरोमणि जी, प्रिय मित्र, सुन्दर हास्य पुट हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर,
आदरणीय भाई राजेश जी हार्दिक आभार \\\\सादर
आदरणीय प्रदीप जी हार्दिक आभार \\\\सादर
आदरणीया कुंती जी अपने उचित ही कहा है ,लेकिन ये मेरी समस्या नहीं थी मेरे एक मित्र है ,वो अपनी कथा सुना रहे थे! बस उसी पर मैंने चार लाइन लिख दिया \\\\सादर
चलिए कम से कम आपने गलती तो मान ही ली, तो बधाई भी लीजिए इस घनाक्षरी पर
अब तो माफ करना ही पड़ेगा
दीपक जी
सस्नेह बधाई
प्रेम हो जाना या प्रेम करना कोई बुरी बात नहीं , प्रेम में दिमागी संतुलन खोना बुरी बात है , जो कोई ज़मीन पर पैर टिकाकर प्रेम से मुखातिब होता है वहीं जिंदगी में सफ़ल होता . प्रेम की राह में छोटी बड़ी बाधाएँ बहुत आती है.जीवन बहुत सुंदर है अगर एक राह बंद होती है तो दुसरी राह निकल ही आती है.......आत्मग्लानी त्याग कर भैया कदम आगे बढ़ाइये./ सादर / कुंती .
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