तूफ़ान जोरों पर था , बादलों की घुमड़ घुम भी शुरू हो चुकी थी , पतझड़ के मौसम में सारी पत्तियां झड़ चुकी थीं , उनका तिनकों से बना घोंसला मुझे साफ़ नज़र आ रहा था , वो हवा में डोलती डालों पर सहमे सहमे बैठे कभी अपने घोंसलों को देखते तो कभी इस तूफानी मंज़र में अपनी नज़र इधर उधर दौड़ाते , एकाएक मै उन परिंदों की भाव वेदना में डूब सा गया , कितने बेसहारा, कितने असुरक्षित , कितना निर्दोष भाव ,कोई शिकायत नही , ये कैसा समर्पण , लगा कि कहर भी परमात्मा ढा रहा हो और उसे झेल भी परमात्मा ही रहा हो , दो दृश्यों में जैसे एक समाहित था , जैसे अद्वैत घट रहा हो । वो ना तो अपना घोंसला बचाने की कोशिश कर रहे थे और ना ही कोई सुरक्षित जगह ढूंढ रहे थे , दो विरोधी दशाओं में एक ही भाव, कोई विरोध नही , जैसे स्वीकार कर रखा हो उसकी मर्ज़ी को , कितने करीब अस्तित्व के , कोई फासला ही नही उनके और प्रकृति के बीच , परमात्मा ही बैठा रहा होगा उनके रूप में , और दूसरी तरफ हम मनुष्य जो जुटे रहते हैं हमेशा अपनी सुरक्षा बनाने में इस लिए ही तो दूर होते गए अपनी ही समग्रता से और क्षुद्र होते गए , हमने बाहर ही नही भीतर भी सुरक्षा की दीवारें खड़ी कर लीं सच हम कितने दूर - दूर जीते हैं प्रकृति से, एक तरफ तो परमात्मा की इतनी विराट लीला परमात्मा की और दूसरी तरफ इन सबसे अन्जान अपनी क्षुद्रता में खोया मनुष्य , ये कहाँ जीते हैं हम अपनी आँखे बन्द किये हुये और ये कितने विराट जैसे सबकुछ हो उन्ही का , पूरा आकाश है उनकी छत जिसमे भरते वो उड़ाने , हम भी तोड़ सके जो मन की दीवारें और उड़ सकें अपने अन्तर आकाश में, हम भी स्वीकार कर सकें उसकी समग्रता को , अस्तित्व के एक भाव में डूबे वो पक्षी शायद सच्चे सन्यासी थे , जो सन्यास की सच्ची परिभाषा कह रहे थे ।
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बहुत बहुत शुक्रिया अशोक कुमार जी
"कितना निर्दोष भाव ,कोई शिकायत नही , ये कैसा समर्पण , लगा कि कहर भी परमात्मा ढा रहा हो और उसे झेल भी परमात्मा ही रहा हो ," वाह बहुत सुन्दर रचना आदरणीय नीरज मिश्रा जी.
बहुत बहुत शुक्रिया लक्ष्मण प्रसाद जी
मनुज को पक्षी तो क्या चींटी तक से अनुशासन सीखने को मिलता है | परमात्मा भी उनकी मदद करता है, जो घनात्मक
सोच के साथ प्रयत्नशील रहते है | सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
धन्यवाद श्री राम जी
कथा के रूप में सुन्दर प्रस्तुति ...............
बहुत बहुत अनुग्रह शालिनी जी
सादर धन्यवाद केवल प्रसाद जी
आ0 नीरज भाई जी, ’कोई फासला ही नही उनके और प्रकृति के बीच, परमात्मा ही बैठा रहा होगा उनके रूप में....।।’ बहुत सुन्दर भाव। बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .
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