बंज़र होती धरती
किसान बे-हाल है
सोच रहा है इस बार भी पानी मिलेगा
मेरी फसल को या नही
या गुजरे कई सालो जैसा ही
ये साल है .........
सोच रहा है ......
क्या कम होगा .......?????
इस बार मेरे कर्ज का बोझ
या कहीं हर साल की तरह इस साल भी तो
बढ़ नही जायेगा दिल पर मेरे
अन्नदाता होने का बोझ ..........
पढ़- लिख कर लोग बड़े बनते हैं
मैं ठहरा अनपढ़ गंवार ........
नाम अन्नदाता है मेरा
मगर मेरे घर में नही खाने को
दाने चार ..........
रह -रह कर बाबा की बाते
याद आती हैं मुझको आज
बेटा पढ़-लिख ले तू तो
वरना रह जायेगा मुझ जैसा गंवार .......
काश कि मैं भी पढ़ लेता
तो आज बड़ा आदमी होता ....
जिस अनाज को उगाकर भी भूखा सोता हूँ
खरीद लेता उसको दो पल में ही
देकर मैं कुछ पैसे बाज़ार ......
बाबा तो फिर भी अच्छे थे
लेकिन मैं तो हूँ इतना मजबूर
कहता है मेरा बेटा मुझसे
बाबा मैं भी जाउंगा स्कूल ...
मैं नजरे बचाकर कहता हूँ उससे
तू मेरे साथ काम पर चलेगा बेटा तो
आज हमे दोनों वक़्त खाना मिल जायेगा .....!!!!!
Comment
आदरणीय विजय मिश्र जी सादर नमस्कार व धन्यवाद आपने रचना को समझा ...
आदरणीय जवाहर सिंह सर नमस्कार
मैं भी एक किसान की ही बेटी हूँ और पढ़ भी रही हूँ .....जैसे पांचो उंगलिया एक सामान नही होती वैसे ही सभी किसानो की हालत भी
एक जैसी नही है , लेकिन अधिकतर किसानो/ मजदूरो की यही हालत है ....ये मैंने हकीक़त में देखा है ........धन्यवाद ..
आदरणीया प्रथम तो आपको इस प्रयास पर बधाई!
मुझे लगता है कि आप लिखने के पहले यह तय नहीं कर पायीं कि लिखना क्या है? मसाला फिल्मों की तरह सारा मसाला मौजूद है लेकिन संदेश नदारद। किसान के हालात, उसपर बढ़ता कर्ज का पढ़ाई से क्या संबंध है? इस देश में कितने लोग पढ़ लिखकर बड़े आदमी बन गए?
यथार्थ के करीब इस रचना के कलवार और संयोजन के लिए हार्दिक बधाई सोनम जी ! आज के हालात पर विचार को ऐसी रचनाएँ प्रेरित करती है यही उनकी सफलता है ।
आपकी यह पहली पोस्ट मेरे नजर से गुजरी है, क्षमा चाहता हूं । किसान अन्नदाता है, बिन पानी बेहाल है, यह सच है, उसकी मजबूरी को भी आपने उकेरने का प्रयास किया है जिसके लिए बहुत बधाई । लिखते रहें, आपको पढ़ने का आग्रह जरूर रहेगा किंतु किसी किसान का और करीब से परीक्षण करना आवश्यक होगा ताकि सच पूरा का पूरा और ज्यों का त्यों आ सके
आ0 सोनम जी, कथ्य तो सुन्दर है, वास्तविकता भी है, एक दलित और मजदूर का मर्म भी उजागर हुआ है, और सरकार की नई-नई योजनाओं की भी पोल भी खुल रही है। और क्या चाहिए?.......हां! एक भावी नागरिक की स्वतंत्रता पर आज भी बेड़ी पड़ी हुई है। यह आजादी कब मिलेगी?....बच्चा, लड़का या लड़की कब और किसकी सुरक्षा में विद्यालय जाएगा? यह कौन तय करेगा?... बहुत सुन्दर, तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,
स्नेही सोनम!
किसान मजदूर का यथार्थ ... और ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा, क्योंकि मै उस किसान का बेटा हूँ, जिसने हमें स्कूल भेजा ....
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