"कुछ दिनों बाद
पूछेगी जब ये दुनिया मुझसे
हुआ क्या तेरी कलम को
क्यों रूठी है तुझसे वो
जबाब क्या दूँगा जानता नहीं
क्या कहूँ के क्यों कर लिया
तर्क ए ताल्लुक मैंने उससे...............
दरअसल लिखता क्या था मैं
ये मैं खुद ही जानता नहीं
और ये भी नहीं मालूम
जो लिखता था वो सार्थक था
या निरर्थक...............
मैं तो बस उतारता था उसे
इक तसव्वुर जो दिल में बसा था
इक तस्वीर जो अक्स था उसका
वो इक अज़ब मासूम सा शख्स
बस पुकारता रहता था मैं उसे...........
जब कविता मेरी चित्रपटल होती थी
और शब्दों के रंग
मोहब्बत की बड़ी सुंदर सी कूची थी मेरी
और मैं
एक दीवाना मुसव्विर........................
जो मुन्तजिर था उसका
और तलाशता रहता था उसे ही अपनी फनकारी में .........
जब वीरान रातों में मैं भटकता था
और मेरी चाँदनी पसरी होती थी
दूर दूर तक
और होती थी निस्तब्धता
बड़ी मनभावन थी ये दुनिया मेरी
ज़माने की नज़रों से दूर
जहाँ केवल शांति थी
न कोई चिंता न फ़िक्र
इक ख्वाबों की फ़रेबी दुनिया
जहाँ मैं खोया रहता था
वो पूरा चाँद उसका दर्पण होता था
जो ऐसा लगता था जैसे
उसके चेहरे के नूर से ही दमक रहा होता था
गूँजता था चारों ओर प्रेमगीत कोई
जिसमें उसे कहने के लिए मैं शब्द खोजता था
अज़ब ही सा समाँ होता था वो भी ........
अचानक यूँ लगता था
के वो मेरे सामने ही तो बैठी है
और मेरी दीवानगी पे हँस रही है
जब वो हँसती थी तो फूल झरते थे
और मैं तो बस उसकी तस्वीर बनाता रहता था
वारफ़्ता उसकी निश्छल मुस्कराहट में .........
उसकी उस तस्वीर को ही
दुनिया मेरी कविता समझती थी
और मुझको शायर ......................
अब जब वो मुझसे दूर है
न शब्द है मेरे पास न भावना
न कोई रंग न कल्पना
न वो सैलाब ए तखय्युल है
और चांदनी भी अब सुहानी नहीं लगती
न तरन्नुम ही बजती है अब कोई
हाँ ,वीरानियाँ आज भी मेरी साथी है
जो अब भी मुझे उतनी ही प्यारी हैं
शायद इन्ही वीरानियों और
तनहाइयों में गुम हो गया हूँ मैं
मगर गलती भी तो मेरी ही थी
उससे दिल लगाने की
क्योंकि वो तो आसमाँ की जीनत थी
और मैं
फ़क़त वो ही दीवाना मुस्सविर ........................
नि:शब्द हूँ मैं अब............
के ये सब फ़क़त झूठा सपना था
अब तो रोशनाई भी नहीं कलम में
के उभार सकूँ फिर उसका रूप मैं
हाँ ,चश्म ए पुरनम जरुर बख्श गई है वो मुझको
मगर पगली ,आँसुओं के रंग नहीं होते
नहीं तो उकेरता फिर तुझे ही
अपनी कल्पना के किरचों से उसी चित्रपटल पे
मगर कैसे
मैं शायर न था ,न हूँ और न रहूँ कभी ................''
~~~ चिराग़
MAY 18,2013
[पूर्णतः मौलिक व अप्रकाशित]
तर्क ए ताल्लुक - सम्बन्ध विच्छेद
मुसव्विर - चित्रकार
मुन्तजिर - प्रतीक्षारत
वारफ़्ता - खोया हुआ
तखय्युल - कल्पना
जीनत - शोभा
चश्म ए पुरनम - भींगी आँखें
Comment
आदरणीय अशोक जी ,ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद ...सर्वथा स्नेहाशीष की अभिलाषा रहेगी .....
आदरणीय शालिनी जी, आपने मेरा बहुत उत्साहवर्धन किया ...बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका ......
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय चिराग जी.
अभिनव जी ,बन्धु बहुत बहुत धन्यवाद ,आप सभी अग्रजों और गुरुजनों के आशीर्वाद और पथप्रदर्शन के लिए प्रतीक्षारत हूँ ...आपने अपना स्नेहाशीष प्रदान करके मुझे कृतार्थ कर दिया.....
बहुत खूब चिराग जी आपकी इस अंतर्यात्रा में मैं भी पढ़ते पढ़ते खो सा गया , अच्छी बहती सी कविता है .. बहुत खूब बधाई आपको !!
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