(प्रवास पर होने के कारण तरही मुशायरा अंक ३५ की ग़ज़ल यहाँ पेश कर रही हूँ )
आज जिस हाल में खुदा लाया
वक्त सपने वहीँ सजा लाया
रात सपने हसीन लाती है
दिन बुलाकर करीब क्या लाया
चाँदनी से सितारे रूठेंगे
चाँद दिल रात का चुरा लाया
तुम मिलोगे हजार कोशिश की
फिर हमें आज वास्ता लाया
जाते- जाते यही कहा उसने
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
मोड़ जिसपर जुदा हुए थे हम
फिर वहीँ आज रास्ता लाया
कैसे भरता उड़ान वो अपनी
वक़्त जाकर उसे उठा लाया
आस्मां पर निगाह थी अपनी
वक़्त काफ़िर नज़र झुका लाया
मौज़ अपने रुमाल में रख ले
नीर ‘पुखराज़’ जो बहा लाया
आग जिसको तलाश करती थी
वो हवा एक काफिला लाया
खिल न पाये गुलाब भी देखो
'राज' किसका नसीब क्या लाया
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Comment
कहाँ चल दिये.. ??
ग़ज़ल पर यही कहूँगा.. .
वक़्त था कम नहीं तो सब कहते
शेर दर शेर वो मज़ा लाया
सादर
कैसे भरता उड़ान वो अपनी
वक़्त जाकर उसे उठा लाया... बहुत खूब राजेश जी ..क्या गज़ल कही है आपने!
बहुत बधाई राजेश कुमारी जी वाह वाह वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है आपने
आदरणीय राजेश कुमारी जी!
आदरणीया तरही में आप शामिल नहीं हो पाएंगी इस बात का दुःख रहेगा साथ ही साथ आपकी प्रतीक्षा भी रहेगी. ओ बी ओ हेतु आपका यह लगाव एवं स्नेह हम सबके लिए एक सीख है. तरही का आनंद और उत्साह आपने पहले कर दिया, बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
bahut sundar rachna sakhi hardik badhai
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
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