14 पंक्तियां, 24 मात्रायें
तीन बंद (Stanza)
पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां
पहली और चौथी पंक्ति तुकान्त
दूसरी व तीसरी पंक्ति तुकान्त
तीसरे बंद में 6 पंक्तियां
पहली और चौथी तुकान्त
दूसरी व तीसरी तुकान्त
पांचवीं व छठी समान्त
सब तो है वैसा ही, आखिर क्या है बदला
उठते बादल स्याह गगन में हैं बगुले से
छाए मन पर भाव कुम्हलाए छितरे से
दुख का सागर लहराता न तनिक भी छिछला
चिड़िया चहकीं पर गौरैया बहकी बहकी
इस डाली से बस उस डाली फिरती रहती
खिलीं हैं कलियां भी और कोंपल मुस्काती
फिर भी न हरियाई, बगिया अब भी न महकी
हर तरफ हैं किरनें चमकी और छितरी सी
न जाने क्यूं फिर भी ये अंधियारा चुभता
कोई शीशा टूट गया रह रहकर चुभता
इधर समेटूं पाखें लहुलुहान बिखरी सी
बस प्रतीक्षा शेष रही, काश! तुम आ जाओ
यहां क्षितिज पर स्वर्णिम आभा सी छा जाओ
- बृजेश नीरज
Comment
आदरणीय चिराग जी आपका आभार! इसी ओबीओ पर मैंने इससे पूर्व जो साॅनेट डाली थी उसमें इस विधा पर कुछ चर्चा हुई थी। उसका लिंक यह है।
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:363376
इस साॅनेट को भी मैंने जिन नियमों के तहत लिखने का प्रयास किया है उसका जिक्र किया है।
एक अनुरोध कि मैं स्वयं छात्र हूं। कृपया गुरूवर शब्द का प्रयोग मेरे लिए न करें। मुझसे वरिष्ठ और अधिक जानकार लोग यहां मौजूद हैं।
सादर!
bahut hi sundar hai sir...
बेहतरीन रचना गुरुवर ...... कभी सानेट लिखने के नियमों पे प्रकाश डालने की कृपा करें ताकि हम जैसे नए विद्यार्थी सीख सकें .........
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