For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो बीत गयी सो बात गयी ...ये बात किसी ने खूब कहीं

अब क्या सोचे तू ,पड़ा-पड़ा ..उठ जाग जा अब रात गयी

कर तैयारी अब आगे की ,कि रात गयी तो बात गयी 

फिर ना कहना ऐ-यार मेरे .. सारी मेहनत बेकार गयी

मन बाँध ले कुछ बनने की , अब तू ठान ले कुछ करने की

देख सूरज की किरणें  कैसे, तेरी राहों में फ़ैल गयी

न कर बहाना अब कोई, नहीं वक्त ये मनमानी का 

फिर न पछताना कहकर ये ..अब उमर तो सारी बीत गयी

चल कदम बड़ा और चलता जा ,हर रोड़े को ठोकर से मार भगा

फिर देख तेरे इन कदमो में, दुनिया कैसे  ना झुक गयी 

कर दे अचंभित सबको तू ऐसा कोई जादू कर जरा 

दुनिया भी देखे आखिर कैसे,किस्मत तेरे बस में हो गयी

मत देर लगा तू दौड़ लगा सबको पीछे तू छोड़ जरा 

अपने कदमो की धार बढ़ा, रफ़्तार बढ़ा वरना 

फिर अवसर ना देगा समय ये कहकर कि....

"जो बीत गयी सो बात गयी ".

 

Views: 506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by chandramauli pachrangia on September 6, 2013 at 2:52pm

bahut acchi rachna

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 10, 2013 at 10:49am
आदरणीया..पूजा जी, बहुत खूबसूरत रचना आपकी ..शुभकामनाऐ स्वीकार कीजीऐ
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:59am

बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि लेय, बहुत सुन्दर रचना आदरणीया.सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on June 3, 2013 at 9:56am

आदरणीया इस प्रयास पर आपको ढेरों बधाई! 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 31, 2013 at 5:16pm

bahut sundar ... seekh deti rachnaa 

Comment by dinesh solanki on May 31, 2013 at 7:28am

sundar rachna 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 30, 2013 at 7:50pm

सुन्दर भाव अभिव्यक्ति के लिए बधाई, जहां प्रवाह बाधित है वह बार बार पढने से ठीक होजायेगा | अच्छी रचना 

शुभकामनाए 

Comment by shalini rastogi on May 29, 2013 at 7:03pm

प्रेरणादायक कविता ... पर कही कही कविता का प्रवाह अवरुद्ध हो रहा है .. एक बार दोबारा पढ़कर देखें |

अब,नहीं है वक्त कुछ मनमानी की..... इस पंक्ति में 'वक्त' के लिए 'की' नहीं का आना चाहिए  .. वक्त पुल्लिंग शब्द है |

ठोकर को ठोकर से मार भगा.... यह पंक्ति भाव स्पष्ट नही कर पा रही .. पुनः विचार करें 

Comment by Shyam Narain Verma on May 29, 2013 at 4:29pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 3:53pm

बहुत सुन्दर////////////////

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
5 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service