ये लो चाँद-सितारे ले लो
ज़िन्दगी कों हँसकर जीने कों
ये लो रंगीन सहारे ले लो ,
गुज़र रहा था फेरीवाला
एक बंजारा, एक मतवाला
बेच रहा था गली-गली में
जीवन की खुशियों का खज़ाना
मोल भी न लेता वो अलबेला
अनमोल मोती लुटाने वाला .
कोई दुखी था ख़ुशी दे गया
बदले में ले गया आसुओं की माला
किसी घाव कों मलहम दे गया
बदले में ले गया दर्द वो सारा
फिर भी खाली न होता झोला
हर दिन आता वो बंजारा
वो मतवाला, वो अलबेला
और नही कोई वो फेरीवाला
है सबका मालिक ऊपरवाला .
Comment
आदरणीया पूजा जी सादर फेरीवाले को परिभाषित करती उसके सुख दुःख को बयान करती सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.
आदरणीया पूजा अग्रवाल जी
बहुत ही उत्कृष्ट और सुन्दर भाव कथ्य हैं रचना के, एक सहजता है और रवानी भी
रचना में कथ्य का प्रस्तुतीकरण ज़रा सा और साधने से अभिव्यक्ति अद्वितीय हो सकती है.
शुभकामनाएँ
और नही कोई वो फेरीवाला
है सबका मालिक ऊपरवाला
सच ही कहा है आपने सुंदर प्रस्तुति !
आपके इस प्रयास पर आपको बधाई।
एक सुंदर रचना बनते बनते रह गयी। यहां आपसी संवाद के द्वारा मैंने बहुत कुछ सीखा है। आशा है आप भी अन्य सदस्यों से संवाद की स्थिति में रहेंगी जिससे आपका रचनाकर्म और निखर कर प्रस्तुत हो सके।
आदरणीया पूजा जी बहुत कुछ नहीं कहूँगा काफी कुछ गुरुदेव श्री जी ने कह दिया है, केवल इतना ही कहूँगा कि आपकी लेखनी में धार है बस आवश्यकता है तो धार को और धारदार करने की, सधते सधते सध जायेगा. इस सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया पूजा जी आप लिखते रहे ताकि निखार आये .आदरणीय श्री के निर्देशन में हम सब सीख रहे हैं . ओ बी ओ पर आपका हार्दिक स्वागत . इस काव्य रचना में शब्दों का चयन और एक प्रवाह है जो सुखद है । अपनी रचना खुद बार बार पढ़ें और परिमार्जन करें . हार्दिक साधुवाद और शुभकामनाएं !!
कहने वाले कह गए सब कुछ/अब कहना बेकार है...... लिखते रहें और दिए गए सुझावों को गुणते हुए आगे बढ़ते रहें, सादर
किसी रचनाकार को उसकी भावनाओं के सापेक्ष उसकी स्पष्टता ही उसे सटीक शब्द उपलब्ध कराती है. यही रचनाकर्म का आधारभूत चरण है. इसके आगे उसी संप्रेषण को किसी भाषा साहित्य का हिस्सा होने के लिए उचित विधा रुपी साधन का प्रयोग आवश्यक हो जाता है. जिसके विधान पर समय देना किसी रचनाकार को साहित्य के संदर्भ में गंभीर प्रयासकर्ता बनाता है.
आपकी प्रस्तुत रचना के शब्दॊं का संयोजन और रचना की अंतर्निहित गेयता बता रही है कि इस प्रस्तुति में सुगढ़ कविता बनने के सभी गुण वर्तमान हैं. जो कुछ बचा दीखता है वह है आपका जागरुक प्रयास.
आपको इस मंच से जुड़े कुछ दिन हो गये हैं. आपही के सामने कुछ ऑनलाइन इण्टरऐक्टिव आयोजन भी सम्पन्न हो चुके हैं. आशा है, आपने उन आयोजन की प्रस्तुतियों और उनपर आयी टिप्पणियों को मूक श्रोता की तरह देखा-पढ़ा भी हो. आप समझ सकती हैं कि मेरे कहने का आशय क्या है.
शुभेच्छाएँ. .
का जाने किस भेष में बाबा मिल जाए भगवान् रे -
बंजारा, मतवाला,या फिर फेरी वाले भेष में ------बड़े प्यार से मिलना सबे दुनिया में इंसान रे
इस प्रकार का सन्देश देती सुन्दर रचना के लिए बधाई पूजा अग्रवाल जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online