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ग़ज़ल : जीतने तक उड़ान जिंदा रख

बहर : २१२२ १२१२ २२

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बाजुओं की थकान जिंदा रख

जीतने तक उड़ान जिंदा रख

 

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं

है जो खुद पे गुमान जिंदा रख

 

तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं

वो पुराना मकान जिंदा रख

 

बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ

तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख

 

नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ

एक ऐसी दुकान जिंदा रख

 

जान तुझमें ये डाल देंगे कभी

नाक, आँखें व कान जिंदा रख

---------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 9:23pm

बहुत बहुत शुक्रिया वीनस भाई। आपके समर्थन से बल मिलता है।

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 12:37am

बाजुओं की थकान जिंदा रख

जीतने तक उड़ान जिंदा रख.....वाह वा क्या शानदार मतला हुआ है, ढेरों दाद ...
 

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं

है जो खुद पे गुमान जिंदा रख... यह शे'र भी दिल को भा गया भाई ...

पुराने मअयार को काइम रखती इस ग़ज़ल के लिए मुबारकां

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

बहुत बहुत शुक्रिया MAHIMA जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

धन्यवाद Rajesh Kumar Jha जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

बहुत बहुत धन्यवाद Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:32am

शुक्रिया vijay nikore जी

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2013 at 11:32pm

होंसला जगाती गजल ... के लिए बहुत-२ बधाई आदरणीय

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:05pm

बहुत ही बढि़या लगी आपकी ये प्रस्‍तुति, सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 3, 2013 at 2:50pm

behtareen sher hain..aaj pahlee baar aapse rubru hone ka mauka mila ...sadar badhayee ke sath 

Comment by vijay nikore on June 3, 2013 at 7:20am

 

बहुत ही लाजवाब शेर हैं।

विजय निकोर

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