बहर : २१२२ १२१२ २२
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बाजुओं की थकान जिंदा रख
जीतने तक उड़ान जिंदा रख
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं
है जो खुद पे गुमान जिंदा रख
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ
तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख
नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ
एक ऐसी दुकान जिंदा रख
जान तुझमें ये डाल देंगे कभी
नाक, आँखें व कान जिंदा रख
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया वीनस भाई। आपके समर्थन से बल मिलता है।
बाजुओं की थकान जिंदा रख
जीतने तक उड़ान जिंदा रख.....वाह वा क्या शानदार मतला हुआ है, ढेरों दाद ...
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं
है जो खुद पे गुमान जिंदा रख... यह शे'र भी दिल को भा गया भाई ...
पुराने मअयार को काइम रखती इस ग़ज़ल के लिए मुबारकां
बहुत बहुत शुक्रिया MAHIMA जी
धन्यवाद Rajesh Kumar Jha जी
बहुत बहुत धन्यवाद Ashutosh Mishra जी
शुक्रिया vijay nikore जी
होंसला जगाती गजल ... के लिए बहुत-२ बधाई आदरणीय
बहुत ही बढि़या लगी आपकी ये प्रस्तुति, सादर
behtareen sher hain..aaj pahlee baar aapse rubru hone ka mauka mila ...sadar badhayee ke sath
बहुत ही लाजवाब शेर हैं।
विजय निकोर
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