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"प्रकृति क्रीडा "

अडिग खड़ा है
चिर स्थिर
पुष्प से लदा
धरा से आलिंगन करता
तरुवर की निः स्वार्थ सेवा
सम भाव
वाह!

 
सब को देखने दो कुछ क्षण
रजत जड़ी ओस की डाल
चंचल है
हिला देती है बयार
तुम भी आओ मधुप
प्रतीक्षारत है कली
मृदुल होंठो के मकरंद पी लो

 

अरे ! ये क्या ?
मेघ भी उतर रहे हैं
हँसते हुए
शांत सरोवर
सरिता
बूदों संग मिलकर
अद्भुत संगीत सुनायेंगे

 

दादुर की व्याकुलता तो देखो
अभी से टर्र-टर्र करने लगा है
अत्यंत प्रसन्न हूँ

 
मेघ तेरे आगमन के साथ
वातावरण क्या हो जाता है !

***********************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by coontee mukerji on June 5, 2013 at 7:13pm

बहुत सुंदर रचना  ,दिन प्रति दिन आपकी लेखनी में निखार आ रही है .सादर / कुंती

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:16pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी ///

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय मिश्र जी/// सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:12pm

हार्दिक आभार आदरणीय आबिद अली जी/// सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:11pm

हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी/// सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:11pm
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मन जी/// सादर
Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 12:14pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by विजय मिश्र on June 5, 2013 at 10:01am
आज विश्व पर्यावरण दिवस का सुअवसर और प्रकृति पर आपकी यह सुरम्य कविता , बहुत मनभावन है ,बधाई हो राम शिरोमणी जी .
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 9:47am

वर्षा ऋतू के मौसम का आभास कराती सुन्दर रचना के लिए बधाई श्री राम शिरोमणि भाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2013 at 8:47am

वर्षा ऋतु के आगमन की आहट पर सुन्दर रचना हुई है. बहुत ही सुन्दर.भाई राम शिरोमणि जी सादर बधाई स्वीकारें.

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