बहर --रमल मुसद्दस सालिम
2122 2122 2122
उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है
वो खुदाया पास मेरे आ रही है
राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना
जिन्दगी ये सोचती सी जा रही है
क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये
रेत में बुलबुल नहा कर जा रही है
जानते हैं भाग्य अपना पीत पत्ते
फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है
खुल गयीं हैं जुल्फ उसकी आज शायद
वादियों में जो घटा सी छा रही है
बादलों में दूर इक परछाई आकर
ख़ास कर क्यों मुस्कुराती जा रही है
क्या खबर किस रोज़ सज जाएगा मंडप
सोच दुल्हन पैरहन सिलवा रही है
लौट जाएगा परिंदा नीड़ में फिर
सोच कर क्यों झुरझुरी सी आ रही है
जो अधूरे काम अब वो पूर्ण कर ले
'राज' फिर ये जिंदगानी जा रही है
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(मौलिक अप्रकाशित )
Comment
प्रिय सखी डॉ नूतन जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया
राजेश जी बहुत सुन्दर गज़ल... शायद यह फेसबुक मे पढ़ी थी वहाँ टिप्पणी की हैं इस पर ... राजेश जी पहले मैंने गज़ल पर प्रयास किये थे, किन्तु आज गज़ल पर काम करना भूल ही गयी हूँ .. बस गेयता देखती हूँ सुन्दर लगी आपकी गज़ल
आदरणीय DPमाथुर जी ग़ज़ल पर शिरकत करने और दिल से सराहने पर तहे दिल से शुक्रिया |
हिन्दी गजल सुनकर अच्छी लगती थी, लेकिन आज जब दिल से इस गजल को पढ़ा तो लगा कि गजल पढ़ने में भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
क्या किसी तूफान का संकेत है ये,
रेत में बुलबुल नहा कर जा रही है !
अच्छी गजल - डी पी माथुर
राजेश कुमार झा जी ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर हर्षित हूँ तहे दिल से आभार आपका
आपको बधाई इस रचना पर । तकनीकी चीजें गज़ल की मुझे नहीं आती पर पढ़कर बड़ा अच्छा लगा, सादर
आपको बधाई इस रचना पर । तकनीकी चीजें गज़ल की मुझे नहीं आती पर पढ़कर बड़ा अच्छा लगा, सादर
ब्रजेश नीरज जी ग़ज़ल आपकी सराहना पाकर धन्य हुई तहे दिल से आभार आपका
आदरणीया बहुत सुन्दर! हर शेर कहीं दूर तक झकझोरता है। ढेरों बधाई स्वीकार करें।
अब आश्वस्त हुई आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार आपका
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