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बारिशो के 

मौसम में 
मन जब 
चाहे किसी के 
साथ दूर तक 
ठहल आने को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
किसी अंजान
शहर में 
घूमते हुए 
नजरें जब 
किसी अजनबी 
चेहरे में 
तलाशने लगे 
किसी खास 
शख्स को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
या फिर 
निपट अकेलेपन में 
चाह हो 
किसी कंधे की 
किसी स्पर्श की 
दिल खोल के रखने को 
जी चाहे जब 
मैं जानती हूँ 
फिर भी 
जाने क्यूँ 
होता है ये यकीं 
तुम्हारे ख्यालो में 
मैं भी कहीं तो 
महकती होंगी न.... 

मौलिक एंव अप्रकाशित 

Views: 770

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 12:07am

बहुत सुंदर//हार्दिक बधाई//भाई संदीप जी से सहमत हूँ///प्रयासरत रहिये //

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 11:01pm
बहुत सुंदर पंक्तिया..आदरणीया दिव्या जी " हार्दिक शुभकामनाऐं "
Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 9:20pm
मन को छूती रचना,बधाई दिव्या जी!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:07pm

आदरणीया रचना कर्म हेतु आपको बधाई

आपकी रचना में बहुत सी जगह वर्तनी का दोष है 

और अंत में

 

मैं भी कहीं तो 
महकती होंगी न 
यह समझ नहीं पाया क्षमा सहित 

कृपया ध्यान दे...

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