घटाएँ काली-काली हैं
शायद बरसने वाली हैं
वन उपवन हैं प्यासे कब से
तरस रहे हैं पानी बरसे
खेतों और खलिहानों को
मजदूर और किसानों को
आस जगी है अब तो बरसें
बरसों बीत गए हैं बरसे
बरसे तो सबका मन हर्षे
तपन मिटे इस धरती की
हरियाली की चादर फैले
मोर पपीहों का दिल बहले
नाचे लोग घर उपवन में
नव जीवन का संचार हो मन मे
खिलें फूल मुस्काए हर मन
उमड़-घुमड़ कर बरसो घन
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर रचना ...बधाई
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
मौसम मनुष्य के जीवन मे , सुख का बड़ा महत्वपूर्ण कारक है |
जिसपर आपने रचना केन्द्रित की है |
बरसे तो सबका मन हर्षे
सही कहा .............
दिल प्रसन्न हो गया
आ0 प्रज्ञा जी, सुन्दर और मनभावन प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
धटाएँ काली काली हैं
शायद बरसने वाली हैं
मौसम के अनुरूप सुन्दर रचना !
बरसात का बहुत ही सुंदर चित्रण./ सादर / कुंती
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