है रुत मन भावन , वर्षा पावन , आयें हैं घन , खुश दिल से | |
जब आये फुहार , भिगे दिल तार , गावें मल्हार , सब दिल से | |
हरे भये उपवन , खिले बाग़ वन , खुश हैं हर जन , सब दिल से | |
जब भिगोये पवन , खिले हर तन , नाच उठे मन , जब दिल से | |
जब जम कर बरसे ,बादल गरजे , बिजली चमके , देख मन डरे | |
भरा जल चहुओर , बहे झकझोर , शोर हरओर , बहु लोग मरे | |
जब चले तूफ़ान , तोड़े मकान , होता विरान , का लोग करें | |
फसल बहे जल में , गम है मन में , सभी नयन में , अश्क भरें | |
बही टूटी सड़क , कहीं पुल बहे , गिर पेड़ पड़े , राहों में | |
हैं लोग बेहाल , बह गया माल , सब दुखी हैं , आहों में | |
अब सपने टूटे , नसीब फूटे , जब फसल बहे , धारों में | |
सब मिल भजन करें , सो ना पायें , बच्चे रोयें , बाँहों में | |
मौसम का तांडव , देख हताश , सब हैं उदास , घर घर में | |
कौन पास आये , सभी बहाये , कौन बचाये , अब घर में | |
सरकार बेहाल , देख रुत चाल , बहे जब माल , पतंग में | |
वर्मा ये मौसम ,खुशी कहीं गम , बरस रहा है , उमंग में | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
सभी रचनाकारों और पाठकों से अनुरोध है कि भारतीय छंद विधान समूह में शामिल किये गये छंदों का अध्ययन करें और वहाँ से छंदों के विधान को जानें.
प्रयासरत रचनाकार छंदों के मर्म को आत्मसात न कर उसका शाब्दिक रूप ग्रहण करते हैं और रचनाकर्म में तथाकथित रूप से विधान जानने के बावज़ूद गलतियाँ करते हैं.
सादर
आदरणीय मिश्र जी ,
त्रिभंगी छंद में ३२ मात्राएँ , १०,८,८, ६ पर यति और अंत में एक गुरु होता है |
मौसम का तांडव , देख हताश , सब हैं उदास , घर घर में | |
कौन पास आये , सभी बहाये , कौन बचाये , अब घर में | |
सरकार बेहाल , देख रुत चाल , बहे जब माल , पतंग में | शान्दार ! |
बहते हुए झरने का आनन् लिया ...आदरनीय श्यामजी से शिल्प की भी जानकारी मिली ..त्रिभंगी छंद क्या होता है कृपया बताने का कास्ट करें ....
आपका हार्दिक आभार , कृपया स्नेह बनाए रखे | सादर
आदरणी श्यामजी, आपके प्रयास के प्रति हार्दिक बधाइयाँ. प्रयासरत रहें.
एक बात:
ऐसा बार-बार क्यों होता है, आदरणीय, कि आप अपनी रचना में प्रयुक्त छंदों का नाम रचना के साथ नहीं देते ? प्रस्तुत रचना त्रिभंगी छंद में है. लेकिन उस छंद के मर्म को नहीं समझा गया प्रतीत होता है. १०-८-८-६ पर यति का निर्वहन नहीं हो पाया है क्यों कि कई पदों में मात्राएँ भी विधान के अनुसार नियत नहीं हैं.
छंद-परंपरा यह भी है कि त्रिभंगी छंद या इससे मिलते-जुलते चौपइया छंद के पदों का आरम्भ गुरु से होता है. चरणों का अंत गुरु-लघु से न हो तो ही श्रेयस्कर है.
आदरणीय, विदित हो कि यह मंच सीखने-सिखाने का है.
सादर
आदरणीय श्याम जी:
आपकी रचना के भाव अच्छे लगे।बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
सुंदर रचना //हार्दिक बधाई //यदि आप इसे छंद में लिखते तो आनंद आ जाता //
जैसे ***भे प्रगट कृपाला ,दीन दयाला ,कौसिल्या हितकारी ********************
ईश्वर की माया, कही धूप कही छाया ... और क्या कहें! भावप्रधान ...
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