जख्म कांटो से खायें हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता
तुम बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए सब अपने पराये हैं हमे सच्चाई छुपाना नहीं आता
किसी ने दिल से निकाला , किसी ने राह में फेंका
सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता
कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
दिलों में ही घर बसाए हैं हमें महलात बनाना नहीं आता
शहर में धर्मों के भूसों के बड़े ढेर लगे हैं
क्यों वो माचिस थमाए हैं हमें चिंगारी लगाना नहीं आता
जहाँ में ईंटें भी देखी सामने फर्ज भी देखे
प्यार के सेतु बनाये हैं हमे दीवारें बनाना नहीं आता
निज नस नस में बसी देश की माटी की है खुशबू
जब चाहे परदेस में जाएँ हमे स्वदेश भुलाना नहीं आता
क्या होती है आजादी ,उनके परों पे लिखा है
दुखी पंछी उडाये हैं हमे पिंजरों में सजाना नहीं आता
'राज' ने जीत भी देखी औ कभी हार भी देखी
लम्हे दिल में छुपाये हैं हमें दुनिया को जताना नहीं आता
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
ब्रजेश नीरज जी आपको नज्म पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपको वहां न देखकर अफ़सोस तो हमे भी हुआ ।
आदरणीया बहुत सुन्दर! काश! मैं आयोजन में सम्मिलित हो पाता और इसका सस्वर पाठ सुन पाता। अफसोस फिर ताजा हो गया।
आपको हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना के लिए!
हार्दिक आभार डॉ राज जी |
क्या बात है अति सुंदर |
प्रिय गीतिका जी मैं खुशनसीब हूँ की मुझे इतने अच्छे साहित्य की गंभीरता को समझने वाले श्रोता और दर्शक /मित्र मिले आपके साथ उन सभी की सराहना की ऋणी हूँ ,ऐसे पल कभी भुलाए नहीं जा सकते तहे दिल से शुक्रिया ।
बहुत खूब गजल की रचना की आपने आदरणीया!
तुम बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए सब अपने पराये हैं हमे सच्चाई छुपाना नहीं आता
हम खुश नसीब है हमने इस गजल को सस्वर सुना है :)))
आदरणीय बसंत नेमा जी नज़्म आपके दिल को छू सकी मेरे लेखन को सार्थकता मिली तहे दिल से आभार |
बहुत ही सुन्दर नज्म, नज्म की हर पंक्ति दिल मे उतर गई सीधी ..... बिना किसी रुकावट के ..... बधाई हो
प्रिय अरुन हार्दिक आभार आपको नज्म पसंद आई हल्द्वानी में जो नहीं आये थे उन सब को हमने भी मिस किया बहुत अच्छा आयोजन था
आदरणीया बहुत ही बेहतरीन नज्म लिखी है आपने काश सस्वर सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता, खैर इस सुन्दर नज्म हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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