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बरसात से बर्बादी/ चौपाई एवं दोहों में/ जवाहर

प्रस्तुत रचना केदारनाथ के जलप्रलय को अधार मानकर लिखी गयी है.

चौपाई - सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा
पंथ बीच जो कोई आवे. जल धारा सह वो बह जावे.
छिटके पर्वत रेतहि माही, धारा सह अवरुध पथ ताही.
कोई बांध सहै बल कैसे, पवन वेग में छतरी जैसे.
छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.
भोलेनाथ शम्भु त्रिपुरारी, तुमही सबके विपदा हारी.
आफत बाद करो पुनि रचना, बड़ी भयंकर थी प्रभु घटना.
सहन न हो कछु करहु गुसाईं, तेरे शरण भगत की नाई,
दोहा- दीन हीन विनती करौ, हरहु नाथ दुःख मोर.
आफ़तहि निकालो प्रभू, दास कहावहु तोर.

(मौलिक व अप्रकाशित) 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 25, 2013 at 8:57pm

आदरणीया गीतिका जी, सादर अभिवादन !

उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार !
Comment by बृजेश नीरज on June 25, 2013 at 7:47pm

बहुत ही सुन्दर! आपको मेरी हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2013 at 7:34pm

आदरणीय जवाहर जी बडी ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने बहुत बधाई .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 25, 2013 at 6:25pm

छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.

अति सुन्दर रचना 

सादर बधाई आदरणीय सिंह साहब जी 

Comment by D P Mathur on June 25, 2013 at 9:05am

आदरणीय जवाहर जी आपने प्रकृति से ज्यादा छेड़छाड़ करने के परिणाम को भी  सरल ढंग से बताया है, अपने अंदाज की अनोखी रचना !

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 7:12pm

चतुष्पदी रचना की स्म्वेंदना पर बधाई!

छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.…. सटीक कथन ! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 6:55pm

आदरणीया कुंती जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक का हार्दिक आभार! बस अभी मैं दोहा और चौपाई रचना सीख रहा हूँ! आप लोगो का आशीर्वाद अपेक्षित है!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 6:54pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक का हार्दिक आभार!आपकी आल्हा के तर्ज पर रचना आज ही पढ़ी थी, मन रोने रोने को हो आया!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 6:50pm

आदरणीय श्री अरुण शर्मा जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक का हार्दिक आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 6:49pm

आदरणीय श्री अमन कुमार जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक का हार्दिक आभार!गोस्वामी तुलसीदास और उनकी रामचरित मानस हमारे आदर्श शुरू से रहे हैं ... इधर दोहों और चौपाई छंद आदि के बारे में इसी मंच से सीख रहा हूँ!स्नेह बनाये रक्खें!

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