For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बरसात से बर्बादी/ चौपाई एवं दोहों में/ जवाहर

प्रस्तुत रचना केदारनाथ के जलप्रलय को अधार मानकर लिखी गयी है.

चौपाई - सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा
पंथ बीच जो कोई आवे. जल धारा सह वो बह जावे.
छिटके पर्वत रेतहि माही, धारा सह अवरुध पथ ताही.
कोई बांध सहै बल कैसे, पवन वेग में छतरी जैसे.
छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.
भोलेनाथ शम्भु त्रिपुरारी, तुमही सबके विपदा हारी.
आफत बाद करो पुनि रचना, बड़ी भयंकर थी प्रभु घटना.
सहन न हो कछु करहु गुसाईं, तेरे शरण भगत की नाई,
दोहा- दीन हीन विनती करौ, हरहु नाथ दुःख मोर.
आफ़तहि निकालो प्रभू, दास कहावहु तोर.

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 963

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 6:45pm

आदरणीय श्री जीतेन्द्र जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक का हार्दिक आभार!

Comment by coontee mukerji on June 24, 2013 at 5:20pm

बहुत अच्छा वर्णन किया आपने  जवाहर जी .......... सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.
भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.
पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.
बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!
रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई
अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा.............सादर / कुंती.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2013 at 11:43am

छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.आदरणीय जवाहर जी बहुत ही खूबसूरत पद हार्दिक बधाई प्राकर्तिक त्रासदी का  बखान करती हुई चौपाई छंद हेतु 

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:46am

वाह आदरणीय बेहद सुन्दर चौपाई छंद रचा है आपने मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 9:14am

आपकी रचना 

छेड़ा हमने ज्यों विधि रचना, विधि ने किया बराबर उतना.
पथ में शिला रेत की ढेरी, हे प्रभु, छमहु दोष सब मेरी.

मानो तुलसी दास ने कोई रचना .............

सच मे .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 24, 2013 at 8:48am
आदरणीय..जवाहर जी, बहुत सुंदर दोहे..."अपनी रचना में आपने बारिश को जहाँ रिमझिम व सुहावना बताया, वहीं अति बरसात से होती जन धन की हानि को भी स्पष्ट कर दिया.."
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 24, 2013 at 8:01am

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, सादर अभिवादन!

अभी प्रयास कर रहा हूँ. आपलोगों से ही सीख रहा हूँ, गलती अवश्य निकालें ताकि आगे सुधार हो!मात्रा गिनती के मामले में नित्य प्रतिदिन कुछ सीख रहा हूँ. आगे भी मेरा प्रयास जारी रहेगा!आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया क हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2013 at 7:47am

एक अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय जवाहरलाल जी.  बधाई

भाषा अवधी रखना चाहते हैं तो उसे पूरी तरह अवधी रखना भाषा लालित्य के लिहाज से उचित होगा.

एक बात:

दुःख शब्द की तीन मात्राएँ होंगी. दुख की दो मात्राएँ होती हैं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
25 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service