For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !
मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !
धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !
रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!

लगे लंकिनी सा मुझे ,उसका भद्दा फेस !
दिन में कितनी बार वॊ,बदले अपना भेष !!

अब तो देखो हद हुई ,झेलूँ कितनी त्रास
घर आते सुनना पड़ा ,करना है उपवास !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 11:51am

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी //स्नेह यूँ ही बनाए रखे ///पिट पिटाकर आया तो स्नेह ही तो काम आयेगा **हहहह हाहा //प्रणाम सहित हार्दिक आभार /// सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 11:47am

हार्दिक आभार आदरणीय रविकर जी //सादर 

Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 11:45am

घरेलं हिंसा का कानून है राम भैया … सचेत होइये :))))))) और एक अच्छी सलाह ऑफिस से खाना खा के आया कीजिये :)))

और हम सबकी सुहानुभूति आपके साथ है राम भैया :)))

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 11:36am

दीवानों का प्रेम में, ऐसा देखो हाल

पछतायें कुछ साल में, नोचें अपने बाल.

हाहाहा हाहाहा - कैसी मुसीबत गले लग लिए भाई. सुन्दर हास्य प्रद दोहे अनुज, बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on June 26, 2013 at 11:35am

हा हा.. बहुत हास्यपद ...दोहे बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 11:13am
आदरणीय..राम शिरोमणी जी, हास्यप्रद रचना के लिए शुभकामनाऐं

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 10:47am

जीवन की शुरुआत है, तिस पर इतनी ताप

भगवन  ना दे ज़िन्दग़ी, जैसी  जीते  आप .......   :-)))))))))))))

शुभकामनाएँ

लंकिनी सा  = लंकिनी सी

Comment by रविकर on June 26, 2013 at 9:57am

ईश्वर आपकी भी रक्षा करे-

बीबी से लेना नहीं, मोल कभी भी बैर |
पूछ करीबी से किसी, नहीं बैर से खैर ||

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service