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यूँ तो तू चला गया,
किंतु, जाकर भी है यहाँ !
ख्वाबों में,
फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,
है तेरी पायल की छमछम अब भी I
तेरी कोयल सी आवाज़,
आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी I
तू नहीं है अब,
किंतु,
तेरी परछाई
चादर की सलवटों में है वहीं I
तू चला गया,
क्यूँ ?
ये राज़ बस तुझे ही पता I
फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,
जो छूट गईं
यहीं घर पर I

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Comment by Neelam Upadhyaya on December 7, 2010 at 11:54am
बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना । बधाई ।
Comment by asha pandey ojha on December 7, 2010 at 10:41am
वाह...!!! मौन का यह मौन मुखरित होकर बोलना ... एक कशमकश ...एक अहसास ,,मौन की वेदना .. ये मौन सी रचना .. बहुत खूब लगी
...... शर्माया, सुकुचाया मौन.
कभी विरहाग्नि ने जी भर ;
तरसाया तरपाया मौन.
तिल तिल पलपल ही जीवनभर
देता साथ सुहाया मौन .
प्रेम पगी मीरा का मोहन ;
प्रेम गगन पर छाया मौन बहुत कमाल
Comment by Lata R.Ojha on December 7, 2010 at 9:17am
Yaadon ke anmol palon ko,us ehsaas ko badi sundarta se shabdon mein abhivyakt kia hai aapne ..badhai.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 6, 2010 at 7:48pm
अहसास की बहुत शिद्दत है आपके इस काव्य प्रस्तुति में - बहुत खूब !
Comment by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 1:24pm
यादों के अद्भुत कारवाँ की सुंदरतम अभिव्यक्ति |बधाई |

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