व्यस्तता ,ज़िंदगी ,खेद है ,
आपका तो वचन ,वेद है,
हैं मधुर आप,हम खुरदुरे
मित्र ,हम में यही भेद है !
*
दर्द के पुष्प आओ तजें,
हर्ष के पुष्प ही अब सजें,
एक स्मिति अधर पर धरें
नेह की बांसुरी से बजें !
*
उनको दिखना है अब ,नहीं न ,
छुपते रुस्तम दिखे,कहीं न ,
मुक्त आकाश में ढूंढ लो
खत्म है दौड बस यहीं न !
*
एक यादों का शामियाना है,
इसमें सूराख है,पुराना है,
रोशनी की लकीर दिखती है
कोई पैबंद क्या लगाना है ?
__________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
सुंदर मुक्तक!!
मुक्तक के बारे में और भी जानने की चाहत थी!
सुस्न्दर मुक्तक कहे है आदरणीय श्री विश्मभर शुक्ल जी, बधाई स्वीकारे
बढ़िया है-
शुभकामनायें-
आदरणीय सर नमस्कार,
बहुत अच्छी रचना
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