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ग़ज़ल - आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में

आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में

हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में

आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर

खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में

तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें

आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में

ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन

हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में

बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका

हर शख्स होश में है शराबों के शह्र में

चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं

ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में

अल्लाह वाले खौफज़दा होते ही नहीं

नेकी के शहर में, न अज़ाबों के शह्र में

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Arvind Kumar on July 11, 2013 at 2:32am

ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन

हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में...

वाह

Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 2:07am

जिंदाबाद भाई जिंदाबाद

मअयारी ग़ज़ल कही है .... मज़ा आ गया

Comment by MAHIMA SHREE on July 7, 2013 at 3:14pm

आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में

हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में... बहुत ही सुंदर गजल आदरणीय .. हार्दिक बधाई आपको

Comment by वेदिका on July 7, 2013 at 6:53am

वाह!

बेहद ही सुंदर गजल!!

एक निवेदन करना चाहती थी आपकी गजल के माध्यम से, जो की पहले भी कई बार किया जा चुका है, "अगर गजल की प्रस्तुति के साथ साथ में बहर भी दे दी जाये, तो हम जैसे नौसिखियों का बहुत भला होगा!! 

Comment by shashi purwar on July 6, 2013 at 11:21pm

bahut sundar gajal

चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं

ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में

waah

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 7:48pm

चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें सुफैद हैं

ये कौन आ गया है खिज़ाबों के शह्र में...............बहुत खूब!

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 5, 2013 at 6:24pm

आदरणीय     सुशिल साहिल  

जी जितनी बार पढो उतना मज़ा आता है 
भाव को आत्मसात करने में अच्छा लगता  है 

तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें ---// इसमें और की जगह  शायद  'ओ' आना था. टंकन की ग़लती लगती  है 

आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में

सादर आभार 
Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:41pm

सुंदर रचना 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2013 at 9:37am

बहुत खूबसूरत गज़ल पेश की है आ० सुशील ठाकुर जी 

ह्रदय से बहुत बहुत बधाई

Comment by रविकर on July 5, 2013 at 8:14am

वाह भाई जी वाह-
सादर बधाइयां -

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