For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चुरा लेता है दिल सबका [गीत]

चुरा लेता है दिल सबका ,
बड़ा चित चोर है मोहन ।
कि हर जर्रे में बसता है ,
नही किस ओर है मोहन ।

निगाहोँ में भरा हो जब ,
प्रभू के प्रेम का प्याला ।
दिखायी हर जगह देगा ,
तुम्हे वो बांसुरी वाला ।

हर सच्चे दीवाने को
यही महसूस होता है ,
है छाया हर जगह उसकी
बसा हर ठौर है मोहन ।

न दौलत का वो भूखा है ,
न रिश्वत से ही बिकता है ।
हमारी आँख का तारा ,
मोहब्बत से ही बिकता है ।

ज़माना कुछ भी करले पर
झुका सकता नही उसको ,
लेकिन प्रेम के आगे
बड़ा कमज़ोर है मोहन ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

Views: 933

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on July 13, 2013 at 11:34am

आदरणीया प्राची जी
एक सीख देने वाला व्यक्ति भले ही स्वयं को गुरु मान ने से इनकार करे
तो ये उसका बड़प्पन है पर अगर सीख लेने वाला श्रद्धा से न झुका तो मेरे
देखे वो सीख न सकेगा । मै एक सवेंदनशील और भावनाओं से भरा इंसान हूँ और कभी कभी
पागल हो जाता हूँ कि इन भावनाओं को कैसे शब्दों में उतार दूँ ,,,,,,,,,सोना तो बहुत है
पर गहने बनाना नही आता .......
और आप जैसे लोग मेरी कविता पर जब टिप्पणी करते है तो ये ही मेरे लिए
बहुत ख़ुशी की बात है ..............
सादर ..................._/\_..................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 10:58pm

नीरज जी 

यह मंच सात्विक साहित्यिक साधना का एक गंभीर मंच है.

किसी भी सुझाव और समझाने बूझने के परिपाटी के प्रति .... यदि रचनाकार का लहजा संयत न हो तो,टिप्पणी में बेतुके गीतों की पंक्तियाँ कोई सार्थक भाव संप्रेषित करने में सक्षम हों सकेंगी, मुझे इसमें संशय है 

खैर.. 

न यहाँ कोइ स्वयं को गुरु मानता है, न कहता है,  न कहाता है .. इन अन्यथा के विशेषणों से बच कर ही हम सहजता से तथ्यपरक चर्चाएं करें समझें, यही निवेदन है.

साहित्य साधना अनवरत चलती रहे 

शुभ कामनाएं 

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 7:24pm

आदरणीया प्राची जी क्षमा चाहूंगा आपने तो कुछ और ले लिया
मेरी बात का। आप की टिप्पणी पढ़ के सोच में पड़ गया
जो मै सोच भी नही सकता था आपने ऐसा अर्थ कैसे ले लिया
मेरी बात का .......खैर फिर भी मै अपनी बात को स्पष्ट करना चाहूंगा
बेवज़ह मेहरबानी से मेरा मतलब है किसी का निस्वार्थ
भाव से मार्ग दर्शन करना ...... एक माँ अपने बच्चे को चलना
सिखाती है तो उसका पूरा ध्यान बच्चे के चलने पे रहता है .
वो चलती इस लिए है कि वो बच्चे को चलना सिखा सके ,,,,,,
केवल उस वक्त बच्चे के लिए माँ का चलना एक वज़ह हो सकता
है पर माँ के स्वयं के लिए कोई निजी प्रयोजन नही है
चलने का,,,,,,, यहाँ हमारे देश में हमने गुरु को भगवान् से
भी ऊंचा दर्ज़ा दिया है ......भगवान् जो बेवज़ह बिना कारण
ही आप पर कृपा करे बिना किसी स्वार्थ के आपको राह दिखाए .
और सीख देने वाला गुरु हो ही जाता है .......
बस इतना ही बोलूँगा इस बार भी अगर कोई बात आप को गलत
लगे तो उसके लिए पहले से ही क्षमा प्रार्थी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 4:08pm

नीरज मिश्रा जी 

यदि आप टिप्पणी को ठीक से ध्यान देकर पढ़ें तो आप सुझाव अवश्य ही समझ पायेंगे.

लेकिन जो समझना ही न जाहे उसे किसी भी भाषा में किसी भी तरह से समझाया नहीं जा सकता.

यदि आप मंच पर सीखने सिखाने और समझने समझाने को बेवजह की मेहरबानी मानते हैं तो मैं आदरणीय प्रधान संपादक महोदय से यह निवेदन अवश्य करूंगी कि आपकी किसी भी अपरिपक्व रचना को मंच पर अनुमोदन न मिले, ताकि हम गलती से भी आपकी रचना पर सुझाव में अपना वक़्त जाया न करें.

डॉ० प्राची 

सदस्य टीम प्रबंधन 

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 11:02am

आदरणीया प्राची जी एक गाना सुना करता हूँ अक्सर
तुम पग पग पे समझाते ।
हम फिर भी समझ न पाते ।
और आप फिर भी समझाते ।
क्या बात है ...................
किसी की ऐसी मेहरबानी बेवज़ह
हो तो उसके लिए श्रद्धा अपने आप
ही ह्रदय में जगह कर जाती है ......

हर बार मेरा ऐसा मार्ग दर्शन करने के लिए
दिल के भावों से आपका अनुग्रह ._/\_

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 10:54am

Yateendra bhai thanks

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 10:53am

आदरणीय कल्पना जी बहुत बहुत आभार आपका ।
हम कहाँ रखेंगे ये प्यार आपका ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 10:51am

बहुत बहुत अनुग्रह पूर्ण धन्यवाद
आदरणीय राजेश भाई .._/\_

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 10:49am

धन्यवाद प्रीती जी

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 10:48am

शुक्रिया कुन्ती जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service