जीव-प्रकृति से प्यार करें,
बनकर धरा हितेश!
पहाड़ों की शिखाओं पर
हरियाली से केश
कुछ घुंघराले
कुछ लट वाले
कुछ तने-तने रेश।1
बहे पवन पुरवाई या
पछुवा चले बयार
इठलाती औ
बलखाती ज्यों
झूमें मस्त दिनेश।2
गूंजें वन में कलरव धुन
ठुमरी औ मल्हार
नृत्य उर्वशी
रम्भा करती
किरने अर्जुन वेश।3
तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ क्लेश।4
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 शिज्जू भाई जी, प्रणाम। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन से मुझमें आत्मबल बढ़ा है। आपका तहेदिल बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम। आपके स्नेह और आशीष के लिए मैं सदा ही ललायित रहता हूं। और जब ऐसा होता है, तो उत्साह और भी बढ़ जाता है। आपका तहेदिल बहुत-बहुत आभार। सादर,
केवल प्रसाद जी आपकी इस रचना को पढ़ने से ज़्यादा गुनगुनाने मे आनंद आ रहा है बेहतरीन बधाई स्वीकार करें
भाई केवल प्रसादजी, आपने एक अंतराल बाद मुग्ध किया है ! वाह !
क्या भाव.. क्या शब्द.. क्या ही सहज प्रवाह.. पुनः-पुनः वाह..
इस रचना पर अभी इतना ही.
शुभेच्छाएँ
आ0 प्राची मैम जी, आपकी टिप्पणी मात्र से ही मेरी रचना को पूर्णतः मिल गई और मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 लड़ीवाला सर जी, वास्तव में प्राकृतिक दृश्यों को शब्दों में पिरोना या उकेरना दिल में एक उत्साह, उमंग व स्फूर्ति प्रदान करती है। आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राम शिरोमणि भाई जी, आपके स्नेह व उत्साहवर्धन से मन प्रसन्न हो गया। आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राजेश भाई जी, आपका स्नेह व उत्साहवर्धन से मन प्रसन्न हो गया। आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
आ0 कुन्ती मैम जी, आपका स्नेह व आशीष पाकर रचना सार्थक हुई। आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,
नवगीत पर प्रयास के लिए बधाई आ० केवल प्रसाद जी
गूंजें वन में कलरव धुन
ठुमरी औ मल्हार
नृत्य उर्वशी
रम्भा करती
किरने अर्जुन वेश....सुन्दर शब्द चित्र.
हार्दिक बधाई
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