सुख के झरने देख पराए दुख को लिए निकलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
मर्यादा में घोर निराशा
बाँध तोड़ती अहम पिपाशा
रस्मों और रिवाजों के पुल
लगते हैं बस एक तमाशा
तीव्र वेग से बहती है कब शिव से कहो सम्हलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
अंतरमन का दीप बुझाती
प्रतिस्पर्धा को सुलगाती
होड़ लिए आगे बढ़ने की
लक्ष्य रोज ये नये बनाती
सुधा धैर्य की छोड़ विकल चिंता का गरल निगलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
मतलब की बगिया भाती है
मतलब के गाने गाती है
दूर करे अपनों से सारे
लिए लालसा इठलाती है
कर्तव्यों के पुष्प कभी वो निर्दयी बने कुचलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
--संदीप पटेल "दीप"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय संदीपजी, आपकी इस अति सुन्दर और संयत रचना के बंद अत्यंत सधे हुए हैं. इन पर फिर से आता हूँ,
पहले तो मैं इक्षाओं का अर्थ ही नहीं समझ पाया. कृपया स्पष्ट करें तो मुझे सहुलियत होगी. शुभम्
मतलब की बगिया भाती है
मतलब के गाने गाती है
दूर करे अपनों से सारे
लिए लालसा इठलाती है
कर्तव्यों के पुष्प कभी वो निर्दयी बने कुचलती है .... अहा !!!! अहा !!!! अहा !!!! बहुत ही सुन्दर आदरणीय प्रिय मित्रवर ढेरों बधाइयाँ ढेरों बधाइयाँ आनंद आ गया.
आदरणीय, एक-एक बंद लाजवाब है, सत्य है इच्छाएं मर्यादा में रहना नहीं चाहती हमेशा अपनी मनमर्जी करना चाहती है । किंतु इस सीधे-साधे भाव को आपने जिस खूबसूरती से यहां पिरोया है वह निश्चय की बधाई योग्य है, सो लीजिए हमारी तरफ से 108 बधाईयां, सादर
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