मंद हवा की
लहरों पर बैठ
आकाश ने
हाथों में लिया
सितारों का अक्षत,
अरूणोदय का कुमकुम,
ओस की बूंदें,
बाग से
पुष्प, घास
और तिरोहित कर दी
रात
क्षितिज में।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!
अति सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।
विजय निकोर
आदरणीय राजेश जी इस उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार!
वास्तविकता देखें तो संक्रमित तो मैं हुआ हूं आपकी रचनाओं से।
आपका बहुत आभार!
सादर!
आदरणीय लाडलीवाल जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय माथुर साहब आपका आभार!
आदरणीय सुमित जी आपका आभार!
आदरणीया प्राची जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार!
ये तो गड़बड़ झाला है, आप ऐसे कल्पना नहीं कर सकते---- मैं तो अवाक् हूं कि आखिर कैसे आपने ऐसे सोच लिया । आपकी यह अभिव्यक्ति बड़ी संक्रामक हो सकती है, कम से कम इसने मुझे तो संक्रमित कर ही दिया । सुना था संत ध्यानस्थ होते हैं पर रचनाकार भी ध्यानस्थ हो सकते हैं यह प्रत्यक्ष देख रहा हूं । बहुत ही उन्नत भावों वाली अभिव्यक्ति है ये, सादर
प्रकृति का सुन्दर अहसास कर चित्रण करने हेतु सुन्दर शब्द संयोजन के लिए बधाई श्री ब्रिजेश नीरज जी
क्षितिज तिरोहित हो न सकी
जब जब क्षितिज को पकड़ने का यत्न किया
क्षितिज हर बार दूर होता चला गया |
आँख खुली तो पता लगा
खितिज़ को मैने अहसास किया
देखा, पर क्षितिज का अस्तित्व
नहीं मिला | - लक्ष्मण
आदरणीय बृजेश जी सदा की भांति सुन्दर चित्रण !
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