For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 

सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 

 गर्मी  में  चेहरे का  पसीना  पौंछता   

सावन में छतरी बन जाता है पल्लू 

 

जब- तब शादी में गठबंधन करवाता  

दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू 

झोली बन कर आखत अर्पण करवाता   

फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू  

 

कभी कभी नव शिशु का झूला बन जाता    

आँखों से तिनका चुन लेता  ये  पल्लू   

रोता  बालक  माँ  के पीछे जब दौड़े   

हाथो की ऊँगली बन जाता है  पल्लू 

 

सर ढके जग में संस्कारी कहलाता 

ढल गया तो   कहर बरपाता ये  पल्लू 

छन छन् छन् छन घर की कुंजी छनकाता 

आये आँसू  आँख पौंछता है पल्लू 

 

चाहत में प्रेमी का साहिल बन जाता 

झगड़े  में फंदा  बन जाता ये पल्लू 

भार उठाने सर की टिकड़ी भी बनता 

धोबिन का हंटर  बन जाता है पल्लू   

 

स्वदेशी प्राचीन संस्कृति का द्योतक 

पुरखों की थाती का मानक ये  पल्लू 

जाने अब दुनिया में कैसी हवा बही 

उड़ा ले गई मरी  सिरों से वो  पल्लू  

 

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 

सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 

*********************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

Views: 967

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 5:03pm

सुमित नैथानी जी सही कहा वैसे पल्लू पुराण का कोई अंत नहीं है और भी पहलु हैं बस कुछ ख़ास ही लिख पाई आभार आपका 

Comment by vijay nikore on July 12, 2013 at 4:50pm

पल्लू पर सुन्दर काव्यमय वर्णन के लिए बधाई, आदरणीया।

विजय निकोर    

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 4:20pm

पल्लू पर सुन्दर रचना ....पति के मन को भाता पल्लू 

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 3:04pm

आपने पूरी स्‍पष्‍टता से अपनी बात कही, अब एक बार फिर इस रचना को पढ़ूंगा ताकि पूरा आनंद उठा सकूं, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2013 at 2:56pm

राजेश कुमार झा जी बहुत ख़ुशी हुई आप रचना के भाव की गुत्थियों को छू सके हार्दिक आभार   आपकी दोनों बातों का जबाब इस तरह है सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू -----कहते हैं की पल्लू की शोभा स्त्री के सर पर ही होती है अर्थात पल्लू का अस्तित्व शीश पर विशिष्ट- ता पाता  है ,पूर्णता पाता है (हालां कि अब उस अवधारणा की धज्जियां उड़ चुकी हैं ) 

आखत अर्पण करवाता ----जब विवाह होता है उसके पल्लू में कुछ पूजा सामग्री ,एवं जो भाई खील आदि देता है उसको वह पल्लू से हवन में डालती है जिसे आखत डालना/अर्पण  कहते हैं 
आशा है मैं अपनी बात कहने में सक्षम हुई 
Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:45pm

पल्‍लू के विभिन्‍न रूपों को दर्शाती अत्‍यंत सुंदर रचना हुई है जिसके लिए ढेरों बधाई ।  सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू, यहां तो के प्रयोग की आवश्‍यकता एवं झोली बन कर आखत अर्पण  करवाता में आखत अर्पण , इन दोनों जगह पर कुछ मार्गदर्शन दें ताकि पूरी कविता उसी मनोभाव में ढल कर पढ़ सकूं जिस भाव भूमि में यह निर्मित हुई है । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service