जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
गर्मी में चेहरे का पसीना पौंछता
सावन में छतरी बन जाता है पल्लू
जब- तब शादी में गठबंधन करवाता
दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू
झोली बन कर आखत अर्पण करवाता
फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू
कभी कभी नव शिशु का झूला बन जाता
आँखों से तिनका चुन लेता ये पल्लू
रोता बालक माँ के पीछे जब दौड़े
हाथो की ऊँगली बन जाता है पल्लू
सर ढके जग में संस्कारी कहलाता
ढल गया तो कहर बरपाता ये पल्लू
छन छन् छन् छन घर की कुंजी छनकाता
आये आँसू आँख पौंछता है पल्लू
चाहत में प्रेमी का साहिल बन जाता
झगड़े में फंदा बन जाता ये पल्लू
भार उठाने सर की टिकड़ी भी बनता
धोबिन का हंटर बन जाता है पल्लू
स्वदेशी प्राचीन संस्कृति का द्योतक
पुरखों की थाती का मानक ये पल्लू
जाने अब दुनिया में कैसी हवा बही
उड़ा ले गई मरी सिरों से वो पल्लू
जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सुमित नैथानी जी सही कहा वैसे पल्लू पुराण का कोई अंत नहीं है और भी पहलु हैं बस कुछ ख़ास ही लिख पाई आभार आपका
पल्लू पर सुन्दर काव्यमय वर्णन के लिए बधाई, आदरणीया।
विजय निकोर
पल्लू पर सुन्दर रचना ....पति के मन को भाता पल्लू
आपने पूरी स्पष्टता से अपनी बात कही, अब एक बार फिर इस रचना को पढ़ूंगा ताकि पूरा आनंद उठा सकूं, सादर
राजेश कुमार झा जी बहुत ख़ुशी हुई आप रचना के भाव की गुत्थियों को छू सके हार्दिक आभार आपकी दोनों बातों का जबाब इस तरह है सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू -----कहते हैं की पल्लू की शोभा स्त्री के सर पर ही होती है अर्थात पल्लू का अस्तित्व शीश पर विशिष्ट- ता पाता है ,पूर्णता पाता है (हालां कि अब उस अवधारणा की धज्जियां उड़ चुकी हैं )
पल्लू के विभिन्न रूपों को दर्शाती अत्यंत सुंदर रचना हुई है जिसके लिए ढेरों बधाई । सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू, यहां तो के प्रयोग की आवश्यकता एवं झोली बन कर आखत अर्पण करवाता में आखत अर्पण , इन दोनों जगह पर कुछ मार्गदर्शन दें ताकि पूरी कविता उसी मनोभाव में ढल कर पढ़ सकूं जिस भाव भूमि में यह निर्मित हुई है । सादर
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